हीरानंद यशोदा के
यहां एक तत्व श्री भगवान के अनन्य भक्त थे उन्हें देखकर यशोदा मैया को बड़ा ही
आनंद हुआ मैया ने बड़ी ही श्रद्धा भक्ति से ब्राह्मण के पैर धो कर उन्हें बैठने के
लिए सुंदर आसन दिया कन्हैया को बुलाकर उन्होंने विप्र देवता के चरणों में साष्टांग
प्रणाम करवाया कन्हैया को देखते ही ब्राम्हण गया था आश्चर्यचकित रह गए उनके नेत्र 1:00
तक छवि माधुरी में डूबते-उतराते रहे अपने आप को
संभाल कर उन्होंने कहा यशोदा तुम्हारा लाला पर्यावरण बालक नहीं है यह तो कोई
अवतारी पुरुष लगता है इसका सुयश गाकर झुकी-झुकी तक लोग भवसागर से तड़पते रहेंगे
मैया ने कहा ब्राम्हण देवता आप कन्हैया को आशीर्वाद दें कि भगवान इसकी हर विपत्ति
में रक्षा करें आओ ब्राह्मणों का आशीर्वाद अमोघ होता है इसीलिए आप इस बालक पर कृपा
करें भगवन बचपन से ऊपर एक से एक विपत्ति आ रही है पता नहीं विधाता ने इसके भाग्य
में क्या आया है ब्राह्मण ने कहा यशोदा तुम्हें इसकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं
है यह बालक को विप्र तथा धर्म का अंगरक्षक होगा संसार की कोई विपत्ति इसका कुछ भी
नहीं बिगाड़ सकेगी इसका तो नाम लेकर लोग संपूर्ण विपत्तियों से मुक्त हो जाएंगे यह
बालक दुष्ट संहारक तथा भक्त उद्धारक होगा कुछ लोग परांत यशोदा ने कहा भगवंतराव आप
जो भी प्रसाद पाना चाहे बना ले मैं आपके इच्छा अनुसार व्यवस्था कर दूंगी विप्र देव
ने खीर बनाने का ऊंचा प्रकट की और यशोदा जी ने तत्काल उनके आदेशानुसार सब चीजें
सुलभ करवादी ब्राम्हण में भगवान का स्मरण करते हुए बड़ी ही प्रेम से भोजन बनाया
भोजन थाल में निकालकर भगवान का ध्यान करते हुए यह कहने लगे प्रभु आप प्रसाद
स्वीकार करें हम आंखें खोलकर देखते हैं किस श्यामसुंदर उनके सामने बैठ कर बड़े ही
प्रेम से खीर का भोग लगा रहे हैं ब्राम्हणों ने क्रोधित होकर कहा यशोदा तुम कहां
हो तुम्हारे लाला ने सारा प्रसाद जूठा कर दिया यशोदा ने कहा था यह बालक है आप इसके
अपराध को क्षमा कर दें मैं पुनः सब कुछ ला देती हूं आप दोबारा भोजन बना ले दुबारा
जब ब्राम्हण देवता ने भोजन बनाया हूं भगवान को निवेदन किया तो कन्हैया फिर खीर खाने
लगे ब्राम्हण देव क्रोधित हो गए उन्होंने कहा यशोदा तुम्हारा लाला बड़ा नटखट है यह
बार बार भोजन देखा है अब मैं तुम्हारे यहां भोजन नहीं करूंगा लो संभालो अपने लाला
को मैं तो चलता हूं यशोदा ने ब्राह्मणों ने विनय करके विप्र देवता को मनाया और
कन्हैया को डांटते हुए कहा कान्हा चौहान क्या चाहता है अतिथि बिना भोजन किए लौट
जाएं कन्हैया ने कहा मां इसमें मेरा कोई दोष नहीं है यह बार-बार भूख लग मुझे
बुलाते हैं क्या मंदिर में प्रसाद पाने लगता हूं तो नाराज हो जाते हैं ब्राम्हण
देव भक्त होते ही वह प्रभु को पहचान कर उनके चरणों में गिर पड़े और कहा प्रभु क्या
है वो मुझे क्षमा करें मैं आपको पहचान न सका यशोदा आवा हो गया हूं देखती ही रह गई
एक दिन सब की सब गोपियां इकट्ठा होकर नंदबाबा के घर आए और यशोदा मैया को सुना सुना
कर जो माल की करतूतें कहने लगी अरे यशोदा तेरा कान्हा बड़ा नटखट हो गया है गाय
दुहने का समय ना होने पर भी यह हमारे घर जाकर हमारे बच्चों को खोल देता है हमारे
डांटने पर यह नटखट हटाकर हंसने लगता है यह चोरी के बड़े-बड़े उपाय करके हमारा दूध
नहीं आया और उड़ा चुरा कर खा
जाता है केवल दूध
नहीं खाता तो कोई बात नहीं थी यह हमारे मटकों को भी पटक कर छोड़ देता है यदि घर
में कोई वस्तु इसे नहीं मिलती है तो हमारे बच्चों को ही रुला कर भाग जाता है जब हम
दूध दही ठीक ऊपर रख देती है जहां इसके हाथ नहीं पहुंचते हैं तब यह बड़े-बड़े उपाए
कभी दो चार पीढ़ियों को एक दूसरे पर रख लेता है कभी Google पर चढ़ जाता है इतने पर भी इसका काम नहीं चलता है कहां हो
तो बर्तनों में छेद कर देता है और सारा दूध दही गिराकर बर्बाद कर देता है ऐसा करके
भी दिखाई करता है और हमें ही चोर बताता है तथा छुड़ाया हूं घर का मालिक बन जाता है
मन ही मन प्रसन्न होते हुए तथा ऊपर से रोष प्रकट करते हुए गोपियों ने गोपाल की
शिकायत की मां यशोदा निभाया ओ कान्हा तुम्हारी रोज-रोज की मैं तंग आ गई हूं इन
गोपियों को देख ऐसे सेवर दिखा रही थी जैसे गोकुल की सारी गाय इन्हीं की हो गोपाल
हमारे यहां आओ तो दही की क्या कमी है जो तू दूसरों के यहां जाता है आज से तुम इनके
दरवाजे पर कभी मत जाना गोपाल ने कहा भैया यह सब खुद मुझे बुलाती है और ऊपर से
शिकायत भी करती है आज से मैं यही खेलूंगा और इनके यहां कभी नहीं जाऊंगा मैया ने
गोपाल को नहीं मानती सजाकर उनके हाथ में मुरली थमा दी और उन्हें माखन मिश्री खाने
के लिए दिया उसके बाद मां ने कहा कान्हा देखो दूर मत जाना यही अपने घर के पास
खेलना आजकल बरसात का मौसम है इसीलिए सांप बिच्छू अधिक हो गए हैं तुम कहां हो निकट
मत जाना उनसे दूर रहना मां का आदेश मानकर गोपाल आंगन के बाहर आ गए वहां उन्होंने
देखा कि सामने एक काला नाग सांप का फन निकालकर उनके सौंदर्य का रसपान कर रहा है
गोपाल उसके साथ नाना प्रकार के खेल करने लगे नाग ब्राउन की मधुर बाल लीला का आनंद
लेने लगा थोड़ी देर बाद कन्हैया को देखने के लिए यशोदा बाहर आई और गोपाल को नाग के
साथ जाऊं खेल करते देख कर डर गई जल्दी से उन्होंने कन्हैया को नाक से दूर खींचा और
कान पकड़कर उन्हें दम खाने लगी उन्होंने कहा कहा तुमने मेरा कहना नहीं माना और
बाहर आकर नाक से खेलना शुरु कर दिया आज मैं तुम्हें दंड दिए बिना नहीं छोडूंगी
कान्हा भयभीत नजरों से मां की तरफ से कहां जाऊं और क्षमा मांगने लगे काल भी जिन से
भयभीत रहता है ऐसा हीरो की नात आजमा के सामने वह भी खड़े हैं एक बार मोहनचंद पीने
के लिए मां यशोदा की गोद में चढ़ गए वात्सल्य स्नेह की अधिकता से मां के स्तनों से
अपने आप दूध जलने लगा वह मोहन को दूध पिलाते समय उनका मंद मंद मुस्कान युक्त मुख
निहारने लगी कितने में अंगीठी पर रखे हुए दूध में चुना गया उसे देखकर यशोदाजी मोहन
को अतृप्त छोड़कर जल्दी से दूध उतारने के लिए चाहिए इससे मोहन को क्रोध आ गया उनके
लाल लाल होठ फड़कने पास पड़े हुए लोहे से दही का मटका फोड़ डाला तथा वहीं पर उल्टा
पड़ेगा में
Google पर चढ़ गए और चीन
के पर रखा हुआ माखन बंदरों को बांटने लगे उन्हें यह भी डर लग रहा था कि कहीं मेरी
चोरी खुल ना जाए साहब चौकन्ने हो कर चारों तरफ अतिथि यशोदा जी ने उठते हुए दूध को
उतार कर एक तरफ रख दिया फिर दूसरे घर में आए वहां देखती हैं की दही का बनना टुकड़े
टुकड़े हो गया है वह समझ गई कि यह सब मेरे लाला की करतूत है इधर उधर ढूंढने पर
यशोदा मैया ने देखा कि श्री कृष्ण चौहान कल पर खड़े हैं और मटकों से माखन
निकाल-निकालकर बंदरों को बंदर भी बड़े ही प्रेम से कन्हैया से हाथ से माखन लेकर आ
रहे हैं मानो जन्म-जन्मांतर के भूखे हो क्या ओके क्यों नहीं रहते उन्हें परमात्मा
के हाथ का प्रसाद जो मिल रहा था इसके लिए कई जन्मों तक उन्होंने तपस्या की थी तब
जाकर यह दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ था वह कल पर निश्चिंत खड़े होकर श्री कृष्ण
माखन बांट रहे थे मानो रामावतार में जो वनडे का वितरण बाकी रह गया था उसे पूरा कर
रहे हो यह देखकर यशोदा जी को दबाए हुए पीछे से धीरे-धीरे उनके पास जा पहुंचे जब
श्री कृष्ण ने अपनी मां को हाथ में छड़ी लिए हुए देखा तो ओखली पर से छीनकर भागे
बड़े-बड़े ऋषि मुनि जन्मों की तपस्या के बाद भी जिन भगवान की लीला में प्रदेश नहीं
पाते हैं उंहीं भगवान को पकड़ने के लिए यशोदा जीत गढ़ी उनके हाथ में छड़ी थी तथा
उनकी आंखे क्रोध से लाल की जय श्री कृष्ण अपनी भयभीत आंखों से मां की तरफ देख रहे
थे उन्होंने सोचा कि जब माही पीटने के लिए तैयार है तो मुझे कौन बचाएगा उनके नेत्र
भय से व्याकुल हो रहे थे चाहने डांटते हुए कहा अरे वानर बंद हो पाखंड कहां से
मिलेगा श्रीकृष्ण ने दूर से ही कहा है मैया मुझे मत मार माता ने कहा लाला यदि
पीटने का इतना ही बैठा तो मटका ही क्यों छोड़ा श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं क्या हूं
अब मैं ऐसा कभी नहीं करुंगा तू अपने हाथ की छड़ी नीचे डाल दे मां ने कहा आज तो मैं
तुझे ऐसा दंड दूंगी कि तू ना तो ग्वाल बालों के साथ खेल सकेगा है और ना माखन चोरी
का उधम ही मचा सकेगा भला यदि कोई असर अस्त्र शस्त्र लेकर बान सुदर्शन चक्र का
स्मरण करते किन मैया की छड़ी के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं था वह मां के वात्सल्य
स्नेह से जो बच्चो थे आखिर गोपाल पकड़े गए यशोदा ने कहा कि मैं तेरी शरारतों से
तंग आ चुकी हूं आज तो मैं तुझे ऐसा दंड दूंगी कि तू जिंदगी भर याद रखेगा इसके बाद
उन्होंने सोचा कि अबकी बार इसे रस्सी से बांध देना चाहिए खदेड़ने पर यह कहां-कहां वन
वन भूखा प्यासा रहेगा इसीलिए थोड़ी देर के लिए इसे रस्सी से बांध रहा हूं दूध माखन
तैयार होने पर फिर इसे मना लूंगी जब मैं यशोदा अपने नटखट गोपाल को रस्सी में
बांधने में लगी तब वह दो अंगुल छोटी पड़ गई इसके बाद उन्होंने दूसरी रस्सी जोड़ी
और वह भी छोटी पड़ गई है और कार्य रस्सी पर रस्सी जोड़ती गई किंतु वह सब मिल कर भी
दो दो अंगुल छोटी छोटी हो यशोदा नगर क्या जो डाली फिर भी वह मोहन को नहीं बांध
सकें विभाजन सोचने लगी मुट्ठी भर की तो इसकी कमर है फिर भी सैकड़ों हाथ लंबी रस्सी
से यह याद आता है हर बार दो अंगुल की ही कमी रहती है ना
3 की न 4 की चालीसा अलौकिक चमत्कार है यशोदा जी
आश्चर्यचकित रह गई गोपाल ने देखा क्या मेरी मां का शरीर पसीने से लतपथ हो गया है
मैं थक गई है कृपा करके स्वयं बंद करें भगवान श्रीकृष्ण इतने कोमल हृदय हैं कि
अपने भक्तों के प्रेम को पुष्ट करने वाला थोड़ा भी परिश्रम छाया नहीं कर सकते और
भक्त को परिश्रम से मुक्त करने के लिए स्वयं ही बंधन स्वीकार कर लेते हैं भक्त
कार्यक्रम और कृपा की कमी यही दो अंगुली की दूरी है जब भक्त यह सोचता है कि मैं
अपने परिश्रम से भगवान को मांग लूंगा तब वह भगवान से एक अंगुल दूर हो जाता है और
भगवान अपनी कृपा को समेटकर उससे एक अंगुल और दूर हो जाते हैं जब मां ने देखा तो
गोपाल बंद कर नहीं नहीं जा सकते फिर घर के काम धंधों में लग गई ओखल में बंधे हुए
गोपाल ने उन दोनों अर्जुन वृक्षों को शांति देने पहले यक्षराज कुबेर के पुत्र थे
इनके नाम थे नलकुबेर और मणि गरीब इनके पास धन ऐश्वर्य और सौंदर्य की कोई कमी नहीं
थी इनका घमंड देख कर ही देव ऋषि नारद ने इन्हें श्राप दिया था और वह वृक्ष हो गए
थे भगवान श्री कृष्ण ने सोचा यह दोनों मेरे प्रिय भक्त कुबेर के पुत्र हैं इन्हें
वृक्ष योनि से मुक्त करना चाहिए इसीलिए श्रीकृष्ण ने धीरे धीरे धीरे चल खिसकाते
हुए दोनों वृक्षों के बीच बढ़ा दिया दामोदर भगवान गोपाल की कमर में रस्सी कसी हुई
थी उन्होंने ऊखल को यूंही तनिक जोर से खींचा क्यों ही वृक्षों की जड़े हिल गई
दोनों Facebook बड़े जोर से तड़
तड़ आते हुए पृथ्वी पर गिर पड़े उन दोनों से अग्नि के सामान चाहिए तेजस्वी पुरुष
निकले उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया और हाथ जोड़कर उनकी
स्तुति करने लगे भगवान श्री कृष्ण ने कहा तुम लोग श्रीमद् से अंधे हो रहे थे देव
श्री नारद ने जान देकर भी तुम्हारा कल्याण ही किया था इसीलिए नलकुबेर और मणि गरीब
तुम लोग अब अपने घर जाओ तुम्हें माया मोह से छुड़ाने वाली मेरी भक्ति प्राप्त होगी
यहां पर कुछ पढ़ने वाला हूं नहीं कुछ संस्कृत में बोलने वाला हो मैं तो वही भाषा
में बात करुंगा दोस्तों कि जो हम सभी समझ सकते हैं क्योंकि मुझ में छोड़ा हमें कोई
फर्क नहीं है मैं कोई संत महात्मा नहीं हूं ना ही कोई गुरु नहीं कोई टीचर नहीं कोई
प्रोफेसर मुझ में और आप में कोई फर्क नहीं दोस्तो बस दो अच्छी बातें कहीं से मैंने
जानी है जो आज मैं आपके साथ यहां पर शेयर करने वाला हूं और यह जो हमारा प्रोग्राम
है जो 4 दिन का है ग्राम है उसका
सबसे पहला पाठ है दोस्तों लाइफ ऑफ कृष्ण है यानि की कृष्ण भगवान जिंदगी से आज हमें
यहां पर काफी कुछ जानना है दूसरा है कृष्ण एंड महाभारत यानि की कृष्ण का रोल
महाभारत में किस तरह से रहा था वह हमें जानना है अल्टीमेटली दोस्तों जो लास्ट पार्ट
अपना होता है वही भागवत गीता अध्याय 3 पाठ में अपना प्रोग्राम डिवाइडेड है और आज हम शुरुआत करेंगे दोस्तो लाइफ ऑफ
कृष्ण के द्वारा वाइफ दोस्त कहां है सबसे पहले तो मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि
अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में एक बहुत ही ब्यूटीफुल रिसर्च हुआ था और वो रिश्ते
चाहिए था कि जितने भी संत महात्मा या भगवान इस संसार में आ चुके उन सभी ने
कैसे-कैसे पावर जूते उसने पाया जा कर जैसे एक नॉर्मल इंसान हम सभी ऐसा कहा जाता है
कि वह लाइफ के थर्ड लेवल पर जी रहे हैं तीसरे लेवल पर अब आप कहेंगे थर्ड लेवल मतलब
क्या है बहुत ही सिंपल हे दोस्तों हम एक शब्द समझते हैं इवोल्यूशन क्रांति उसमें
सबसे पहले लेवल पर हे पेड़ पौधे दूसरे लेवल पर हे जानवर तीसरे लेवल पर हम इंसान
हैं वह अब आप समझ पा रहे हैं ठीक है तो दोस्तों ऐसा कहा गया कि स्वामी विवेकानंद
किचन का नाम तो हम सभी लोग जानते हैं दोस्तों उनके लिए कहा गया कि वह लाइफ के छठे
लेवल पर ही रहते शिक्षण यानी कि दोस्त एक नॉर्मल इंसान से कई गुना पावरफुल वाइट
उसी के साथ जैसे मैं आपको कहूं के दोस्तों आप चाहो तो भगवान का नाम सुना है यह
गौतम बुद्ध हम कहते हैं
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