Saturday 15 July 2017

Subah Jaldi Uthane Ke 5 Fayade

क्या यार प्रिया मलिक टाइप करें देखने के लिए एंड पाली टू राइस मेक अ मैन हेल्थी वैल्यू एंड वाइफ यह लाइन बन रहा है लाइफ में सुन चुके होंगे आजकल की इस भागती दौड़ती जिंदगी में हम इतने ज्यादा बिजी हो गए हैं कि हमें रात में सोने का टाइम भी सही नहीं होता है ना ही सुबह उठने का टाइम होता है तो हमें अपनी दिनचर्या लाइफस्टाइल को सुधारना होगा अगर हम अपने सारी चीजों में अच्छा होना चाहते हैं अपनी हेल्थ को लेकर गलत को लेकर और डेवलपमेंट रहा हूं अपने आपको वह पांच अनोखे लेकिन जो आपके लिए बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट है पहला है मानसिक विकास यानि मेंटल डेवलपमेंट ऑफ फिटनेस सुबह के 4:00 ताजी हवा मिलती है साथ ही सूर्य कीपैड वीडियो माइंड कहां होती है उठकर एक्सरसाइज वाकिंग जोगिंग स्विमिंग कर सकते हैं उसका भी आपको टाइम मिल जाता है साथ ही ऐसे में सुबह के समय संचार होता है एनर्जी आती है जो पूरे दिन बनी रहती है जिसकी वजह से आपका शारीरिक और मानसिक विकास को बढ़ावा मिलता है साथिया बहुत ज्यादा हेल्प कहां है अपडेट रहना बहुत जरूरी होता है क्योंकि आपके देश में क्या चल रहा है आपके शहर में क्या चल रहा है पूरी तरीके से इंफॉर्मेशन आती है और हमारे हमारी बॉडी में एनर्जी बनी रहती है हमें महसूस नहीं होती है सुबह उठने के कारण हमारा वातावरण बिल्कुल शुद्ध शांत होता है जो हमारे मेंटल डेवलपमेंट के साथ साथ फिजिकल यानी बॉडी डेवलपमेंट के लिए भी जरूरी है

Tuesday 11 July 2017

about al habib in hindi


अलविदा हबीब साहब


मुंह के थोड़े तिरछे कोण से लगा पाइप, अनूठे अंदाज मे निकलता धुंआ, सिर पर कैप, देखने मे थोड़ा बूढ़ा शरीर पर आवाज ऐसी बुलंद कि नौजवान शरमा जाएं और मंच पर जब यह शख्स प्रस्तुति के लिए उतरे तो तमाम कलाकारों पर ऐसा भारी पड़े कि दर्शक सिर्फ उसकी एक झलक के लिए उमड़ पड़ते थे ।

हिन्दुस्तान मे इस शख्स को हबीब तनवीर के नाम से लोग जानते हैं और थियेटर से जिनका थोड़ा भी परिचय है, उनके लिए वे सदैव आदर के पात्र हबीब साहब हैं पिछले कुछ दिनों से हबीब तनवीर की तबीयत की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी लेकिन उसके प्रशंसकों को उम्मीद थी कि नाटकीय अंदाज में उनकी वापसी हो जाएगी। पर जिदंगी किसी नाटक से कम नहीं है जिसकी भूमिका खत्म हो गई, वह लौटकर नहीं आता ।

उनके नाटकों की धूम देश-विदेश में एक समान रही । किसी महान हस्ती के अवसान पर उसकी जिंदगी भर की उपलब्धियों पर चर्चा होना लाजिमी है, ऐसे में जब हबीब तनवीर के नाटकों बात हो और यह सोचा जाए कि किस नाटक का उल्लेख पहले करें, किसे सबसे प्रसिध्द मानें, तो चयन करना दुरूह कार्य प्रतीत होता है क्योंकि उनका हर नाटक कला का अनुपम नमूना होता था। वे उन लोगों मे से नहीं थे जो जनवादी चोला ओढ़कर सरकारी अनुदान पर क्रांति के नाटक करने का ढोंग रचते हैं उन्होंने थियेटर को सचमुच क्रांति का माध्यम बनाया था।

कुछ यादें : कुछ पुष्प


हबीब तनवीर
इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया

दिसम्बर सर्दियों के दिन थे। कनाट प्लेस में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। यह 1959 की बात है। सुरेश अवस्थी ने बताया ये हबीब तनवीर है। मैंने देखा सिर पर एक टिपिकल टोपी के साथ वे रेनकोट पहने हुए थे। पहली मुलाकात इस तरह हुई। कु छ समय पहले ही वे इंग्लैण्ड से वापस आए थे। उस समय मोहन राकेश भी साथ थे।

यह बात 1959 की है, फिर तो गोष्ठियों में नेमि जी, सुरेश अवस्थी, मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, प्रयाग शुक्ल के साथ हबीब जी से अक्सर भेंट होने लगी। जोधपुर में इप्टा का सम्मेलन 1970 में हुआ था। उसमें हम तीन दिन साथ-साथ रहे।

उनको बहुत नजदीक से जानने और समझने का अवसर मिला। जोधपुर में उन्होंने ठेठ छत्तीसगढ़ी गीत सुनाए, बहुत अच्छा गाते थे हबीब तनवीर, मैंने आगरा बाजार नाटक सबसे पहले दिल्ली में देखा था। उसी समय 1960 में अल्का जी आए थे। अल्का जी का थियेटर और हबीब जी का थियेटर दोनों साथ-साथ निकले थे। एक ओर अल्का जी शेक्सपीयर से और इंग्लैण्ड से परम्परा लेकर आए थे। दूसरी ओर हबीब तनवीर ने इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया। - नामवर सिंह

दिग्गज रंगसाधक का जाना एक अध्याय का अंत


सारी दुनिया में अपने गुण-धर्म को रंगमंच को नया मुहारवा देने वाले पद्मभूषण हबीब तनवीर का निधन बिरादरी व आमजन की नजर में एक अध्याय का अंत है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने तनवीर के निधन पर जारी शोक संदेश में कहा है कि उनके निधन से हिंदी और छत्तीसगढ़ी रंगमंच के एक अत्यंत सुनहरे युग का अंत हो गया।

संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू ने पद्मभूषण से सम्मानित सुप्रसिध्द रंगकर्मी एवं नाटय निर्देशक श्री तनवीर के निधन पर गहन शोक व्यक्त करते हुए कहा कि श्री तनवीर ने छत्तीसगढ़ की समृध्द कला को रंगमंच के माध्यम से विश्व में ख्याति दिलाई। गर्व की बात है कि श्री तनवीर रायपुर के निवासी थे।

रायपुर के हबीब तनवीर


खामोश हुए रंगमंच के फनकार

रायपुर की साँस और छत्तीसगढ़ की धड़कन हबीब साहब के दिल में बसती थी। अपने शहर रायपुर से भले ही दूर रहे हों, लेकिन इसकी याद हमेशा उनके साथ होती थी। परिवार की खैरियत हो या सहकर्मियों की चिंता, हबीब साहब कायम रखे हुए थे। अपनी जन्म भूमि से बेइंतहा मोहब्बत के साथ शहर में खेले गए नाटकों के मंच को भी वे पूरी शिद्दत से प्यार करते थे।

अपनी राजधानी के इस लाड़ले और प्रतिभाशाली कलाकार की दुनिया से विदाई पर पूरा शहर मानो गुमसुम सा हो गया है। घर में एलबम देखकर उनकी यादों को संजोते रिश्तेदार हो या उनके मार्गदर्शन में काम किए हुए कलाकार, सभी के जेहन में हबीब साहब की यादें ताजा रहेंगी।

रंगमंच के इस मुकम्मल फनकार के रग-रग में रायपुर बसता था। यही कारण है कि दूर जाकर भी अपने शहर से उनकी मोहब्बत हमेशा बरकरार रही। खास होकर भी आम होने की उनकी अदा के सभी कायल थे। उनके हुनर का जादू था कि रंगमंदिर से लेकर साइंस कॉलेज में उनके खेले गए नाटक दर्शकों के दिल में बस गए।

सप्रेजी के जीवन की आधारशिलाएं



सप्रे जी के समग्र जीवन पर एक विहंगम दृष्टिï डालने से ऐसा लगता है कि उन पर तीन महानुभावों के जीवन-दर्शन का पूर्ण प्रभाव पड़ा था। वे तीन महानुभाव थे विष्णुशास्त्री चिपुलणकर, बाल गंगाधर तिलक और गोपाल गणेश आगरकर। इनमें से चिपलुणकर तो हाई स्कूल की अध्यापकी छोडक़र मराठी भाषा की सेवा में हो गए और इसी उद्देश्य से मराठी भाषा में एक निबंध माला का प्रकाशन करने लगे। उन्होंने मराठी भाषा को प्राणवान बनाने के लिए अथक प्रयत्न किया और स्वदेश प्रेम की भावना भरने के लिए चोटी की पसीना एड़ी तक बहने दिया। दूसरे दो सज्जन-तिलक और आगरकर, चिपलुणकर के घनिष्ठï सहयोगी थे और देश के प्रति कर्तव्य पालन में ही अपने जीवन की सार्थकता मानते थे।

इस त्रिमूर्ति ने जिस प्रकार स्वार्थ का त्याग कर अविश्रांत परिश्रम करके मराठी भाषा को ओजस्वी, सामथ्र्यवान और संपन्न बनाया उसी प्रकार राष्टï्रभाषा हिंदी को भी सशक्त और सर्वगुण संपन्न, दोष रहित बनाना आवश्यक है- यह संकल्प सप्रे जी ने मन ही मन कर लिया। उन्होंने अपनी कार्य प्रणाली की रूपरेखा भी उसी अवसर पर निश्चित कर ली कि पहले बी.ए. तक शिक्षण प्राप्त कर डिग्री प्राप्त कर ली जाए जिससे उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता मिले और कोई रुकावट न हो। वे चाहने लगे कि शिक्षा का निवियोग निरपेक्ष सेवा में हो, कोई बदला पाने की भावना न रहे। इससे उन्हें जो सुख मिलेगा वही सच्चा सुख है और सुख प्राप्त करना ही प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अंतिम लक्ष्य रहता है।

सप्रे जी की अभिलाषा : सप्रे जी ने हिंदी भाषा के संबंध में अपने संकल्प को सन् 1924 में देहरादून में आयोजित अखिल भारत हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के आसन से इस प्रकार प्रकट किया था- ‘‘मेरे हृदय में राष्टï्रभाषा का भाव पैदा हुआ- अनुभव किया कि इस विशाल देश में एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे सब प्रांतों के लोग अपनी राष्टï्रभाषा मानें और वह हिंदी भाषा को छोडक़र अन्य कोई नहीं है। मैं महाराष्ट्रीय हूं परंतु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है। मैं चाहता हूं कि इस राष्टï्रभाषा के सामने भारत वर्ष का प्रत्येक व्यक्ति वह यह भूल जाए कि मैं महाराष्टï्रीयन हूं, बंगाली हूं, गुजराती हूं या मदरासी हूं। ये मेरे पैंतीस वर्षों के विचार हैं और तभी से मैंने इस बात का निश्चय कर लिया है कि मैं आजीवन हिंदी भाषा की सेवा करते रहूंगा। मैं राष्ट्रभाषा को अपने जीवन में ही सर्वोच्च आसन पर विराजमान देखने का अभिलाषी हूं। ’

हिन्दी के समालोचकों द्वारा भुला दिए गए



पहले समालोचक : माधवराव सप्रे
सुशील कुमार त्रिवेदी

दोष किसका है, कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन स्थिति यही है कि एक मराठी भाषी जीवन भर निष्ठïा तथा एकाग्रता से हिन्दी की सेवा करता रहा, और हिंदी के इतिहासकारों ने उसे भुला दिया। जिस व्यक्ति ने हिंदी में समालोचना-लेखन की परंपरा की नींव डाली, सशक्त निबंधों की रचना की और कई महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, उसी व्यक्ति पं. माधवराव सप्रे का नाम पंडित रामचंद्र शुक्ल और उनके ग्रंथ को आधार बना कर ‘नकल नवीस इतिहासकार’ बनने वालों को याद नहीं रहा, यह एक भूल है या साहित्य-इतिहासकारों की साधन-दरिद्रता है?

पिछड़े इलाके का अगुआ

मध्यप्रदेश, जो आज भी पिछड़ा माना जाता है, उसी का एक और पिछड़ा इलाका छत्तीसगढ़ सप्रेजी की कर्मभूमि रहा, इसी क्षेत्र में उन्होंने आज से लगभग 75 वर्ष पूर्व हिन्दी आंदोलन शुरू किया था। उन्हें छत्तीसगढ़ की सोंधी मिट्टïी से इतना ममत्व था, इतना अनुराग था कि उन्होंने अपने साहित्यिक मासिक पत्र का नाम ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ रखा। यह वही छत्तीसगढ़ मित्र है जिसमें सबसे पहली बार हिंदी ग्रंथों की समालोचना प्रकाशित हुई। बनती संवरती रूप लेती हिन्दी में प्रकाशित होने वाले पहले ग्रंथों की पहली समालोचना को लिखने वाले सप्रे जी ही थे।

पेंड्रा (जिला-बिलासपुर) के राजकुमारों को पढ़ाने से मिलने वाले वेतन में से पैसा बचाकर सप्रे जी ने जनवरी 1900 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का प्रकाशन आरंभ किया। पं. श्रीधर पाठक, जिन्हें आचार्य शुक्ल ने ‘सच्चे स्वच्छंदतावाद का प्रवत्र्तक’ माना है, की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों,- ऊजड़ ग्राम, एकांतवासी योगी, जगत सचाई सार, धन-विजय, गुïणवंत हेमंत तथा अन्य, की विस्तृत विश्लेषणात्मक और विवेचनात्मक वैज्ञानिक समालोचना इसी पत्र में पहली बार प्रकाशित हुई। इसी प्रकार मिश्रबंधु तथा पं. कामता प्रसाद गुरु आदि तत्कालीन महत्वपूर्ण साहित्यकारों की कृतियों की समालोचना सप्रे जी ने ही लिखी। इसके अतिरिक्त पं. महावीर प्रसाद मिश्र, पं. कामता प्रसाद गुरु, पं. गंगा प्रसाद अग्निहोत्री, पं. श्रीधर पाठक आदि की रचनाएं प्राय: ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ में प्रकाशित होती रही।

कुछ वर्ष पूर्व एक ख्याति प्राप्त कहानी-मासिक (सारिका) पत्रिका में एक परिचर्चा प्रकाशित हुई, जिसमें माधवराव सप्रे द्वारा लिखित ‘एक टोकरी भर मिट्टïी’ को हिंदी की पहली मौलिक कहानी बताया गया था। यह कहानी ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ में सन् 1901 में प्रकाशित हुई थी।

अर्थाभाव के कारण ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का प्रकाशन दिसंबर, 1902 में बंद हो गया, पहले एक साल तक इसका मुद्रण रायपुर कैयूमी प्रेस में हुआ, किंतु बाद में यह नागपुर के देशसेवक प्रेस में मुद्रित होता था।

Long Small reactions story in hindi



'साहित्य वैभव' एक सुन्दर और परिपक्व प्रकाशन लगा। चित्रकला, फोटोग्राफी और मुद्रण आदि में जिसे कहा जाता है जो इसमें उत्कृष्टï है। यह एक सच्चाई है, औपचारिकता नहीं है। मैं यह भी मानता हूॅं कि आप भी अपनी पत्रिका को सजाने-सँवारने में पूरी कल्पना लगा देते होंगे। कभी आपसे मिला नहीं हूँ अत: आपके व्यक्तित्व को जानने का अवसर नहीं आया- साहित्य वैभव के माध्यम से जानने का अवसर एक उपलब्धि है। नक्सलवाद और उससे जुड़े विचारों से अवगत होने के लिए सदैव सजग रहा हूँ और यह भी जानता हूँ कि चारू मजुमदार ने यह आन्दोलन क्यों चलाया- चारू का उद्देश्य था जो धनाढ्ïय लोग हैं वे हमें एक म$जदूर के रूप में ही अपनाते हैं और कुछ नहीं, शोषण कर चोकर को फेंक देते हैं। चारू की मृत्यु अदालत ले जाते समय हो गई, हम सब मौन रहे। उस आन्दोलन को कुछ तथाकथित असामाजिक और विदेशी तत्वों ने अपने हाथ में ले लिया ओर बंगाल को आग में झोंक दिया जो कालान्तर में सारे देश में फैल गया जो निश्चित ही विदेशी तत्वों का भारत को कम$जोर करने का एक मन्तव्य है।

मैं आपके सम्पादकीय का समर्थन करता हूँ, नेहरू ने एक बार कहा था, हम बाहरी श्क्तियों से सामना तो कर लेते हैं किन्तु देश के अन्दर छुपे दुश्मनों से कैसे लड़ें।

प्रवीरचन्द्र भंजदेव को किस प्रकार मारा गया और उसे मारने के लिए उस समय के मुख्यमंत्री और उस समय की सरकार और सत्ता में बैठी सरकार का पूरा विवरण उसी समय सरिता (दिल्ली प्रेस) ने एक विशेषांक निकाला था। सम्भव है मेरे संग्रह में हो, कभी मिला तो विवरण दूँगा।दुष्यंत कुमार को सब लोग त्यागी कहा करते थे, मैं दुष्यंत कुमार कहा करता था और आज यह स्थिति है सारे समाज में त्यागी शब्द का लोप हो गया है। उनके जीवन के अधिकांश छायाचित्र मेरे खींचे हुए हैं। टाइम्स ऑफ इंण्डिया के प्रकाशन ''सारिकाÓÓ जो पहले सुचित्रा के नाम से प्रकाशित हुई थी में देखा जा सकता है। दुष्यंत कुमार ने जो यह कविता लिखी थी एक दस्तावेज है अपने आप को व्यवस्था के विरुद्घ बोलने के लिए आगे आने का। बाद तो कुछ ऐसा हुआ कि सत्ता लोलुप समाज के लोग उनकी कविताओं का अर्थ शासन तक पहुँचाते रहे।

- नवल जायसवाल, प्रेमन, बी 201, सर्वधर्म, कोलार रोड, भोपाल-462042

पत्रिका का आमुख सज्जा एवं भीतर के पृष्ठïों पर रेखाचित्रों का प्रयोग अच्छा हुआ है। एक-दो रेखाचित्र कहानियों में भी देना चाहिए था। गिरीश बख्शी की कहानी 'बदलावÓ एक प्रेरक रचना है। सकारात्मक सोच को उजागर करती यह कहानी बूढ़े व्यक्ति की बेहतरी के लिए आवश्यक संदेश दे जाती है। संपादकीय के तहत दुष्यंत कुमार की कविता पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया। आपके विचारों को रेखांकित करती है उनकी कविता। हिंदी को अपाहिज समझनेवालों के लिए डॉ. रवि शर्मा द्वारा लिखा गया लेख हिन्दी अपनाइये महत्वपूर्ण लगा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारागर जैसे संस्मरण प्रत्येक अंक में दें। कविताओं के चयन में थोड़ी सतर्कता बरतें। वैसे केशव दिव्य, नीलिमा कौशल, स्निग्धा की कविता एवं मुकुंद की $ग$जलें प्रभावित करती हैं। साहित्यिक समाचारों को कुछ कम करे, एक साहित्यिक भेंटवार्ता परिचर्चा भी प्रकाशित करें। आपने लघुकथा को स्थान देना आरंभ किया है, धन्यवाद लघु पत्रिकाओं के बीच 'साहित्य वैभवÓ अपना अलग पहचान बना रही है।

-सिद्घेश्वर, अवसर प्रकाशन, पोस्ट बॉक्स नं. 205, करविगहिया, पटना- 800001 (बिहार)

The journey of begusaraya



शीत का उत्कर्षकालीन समय था। प्रात: 4.45 बजे ट्रेन जिस स्टेशन पर रूकी, वह था बेगूसराय। छत्तीसगढ़ प्रदेश के किसी छोटे शहर के स्टेशन जैसा-इत्मीनान और सुकून से भरा। इक्के-दुक्के लोग आते-जाते दिखे, सूचित भाव से बतियाते हुए। किसी मेट्रो सिटी जैसे धड़धड़ाते, ऊपर-नीचे, आगे-पीचे, भागते-दौड़ते, गिरते-हपटते, छकियाते, रफ्तार पकडऩे की धून में पगलाए लोग नहीं थे यहां। गिने-चुने कुछ चेहरे या कहें कुछ साये।

अंधेरा पूरी तरह छटा नहीं था। हमारे पासदो सूटकेस और एक एयरबैग था। काव्यकोष्ठी में सम्मिलित होने और पुस्तक का विमोचन करने आए थे हम। ऊनी वस्त्रों और कम्बल सेहमारे (मेरे साथ पतिदेव श्री प्रदीप जी भी थे) हाथ-पैर, कान-मूंह सब ढंके थे, सिर्फ आंखें टुकुर-टुकुर देख रहीं थी इधर-उधर। नकाबपोशों जैसी हमारी वेशभूषा, पहनावा और हाथ का सूटकेस यह भ्रम उत्पन्न कर रहा था कि सूटकेस में कपड़े लत्ते और गोष्ठी में पढ़ी जाने वाली कविता न होकर चोरी-डकैती या फिरौती के रूपए होंगे।

रमण साहब आने वाले थे हमें रिसीव करने। पर अब तक आए नहीं थे, और जाने आ भी जाते तो हम पहचानते कि नहीं, क्योंकि हमारी तरह ही सबका हुलिया दिख रहा था। दो कदम आगे बढ़े तो अचानक कानों में चिर-परिचित आवाज सुनाई पड़ी। नमस्ते मैडम। आइए अग्रवाल साहब। इनसे मिलिए हमारी धर्मपत्नी हैं। सूटकेस नीचे रखकर हमने अभिवादन में अपने हाथ जोड़ें। रमण साहब (हमारे मेजबान) इस कडक़ड़ाती ठंड में 20 कि.मी. दूर गांव से सपत्नीक हमें लेने आये थे। हमारे न-न करतेरहने पर भी लगेज उन दोनों ने उठा लिया कौन कहता है भारत की संस्कृति, रस्म-रिवाज और बोल-चाल पीड़ी-दर पीढ़ी पीछे छूटती जा रही है?

अतिथि देवोभव: की संस्कृति लुप्तप्राय होती जा रही है? हम उनके साथ स्टेशन से बाहर आए। उनके साथ उनके कार में रवाना हुए। कुछ ही देर में उनके गांव पहुंच गए। गांव में आज उनके नवनिर्मित मकान का उद्घाटन समारोह था। हमें देखकर पूरा परिवार हरसिंगार की महक बिखेरता बिछ सा गया कॉफी आई। सबने गर्मागर्म काफी की चुस्की ली और फिर शाम को मिलने के वायदे के साथ हम सब रमण साहब के साथ होटल सायोनारा आ गए।

यहां आप रिलैक्स होइए। जो खाना हो आर्डर कर लें। हमारे आने की खुशी उनके चेहरे से झलक रही थी। मैं शाम को गाड़ी भेजूंगा। आकर इस मकान को घर बनाइए। उन्होंने निश्छल हंसी बिखेरी।

भाइयों में आज सुनाऊं, सप्रेजी की अमर कहानी



माधवराव के नाम से जुड़ी, हिंदी की यह जन्मकहानी
19 जून 1871 का पिथौरा में जन्म हुआ
कोडोपंत जी ने बच्चे को माधवराव नाम दिया
ओल्ड सी पी एंड बेरार में हिंदी सूर्य का उदय हुआ
1881 में माधव का दाखला अंग्रेजी स्कूल में हुआ
मिडिल में सर्वोच्च 7 रु. छात्रवृत्ति थी पानी
भाइयों मैं आज सुनाऊं, सप्रेजी की अमर कहानी
भारतियों को तब अंग्रेजी पढ़ाते दास बनाने को
लोग भी बच्चों को भेजते, भविष्य बनाने को
1890 में माधव ने एन्ट्रेस पास कर वजीफा पाया
साथ ही 18 वर्ष की आयु विवाह बंधन में पाया

1896 में उनके इंटर पास की खबर थी आनी
सुना रहा हूं, क्रमवार, सप्रेजी की अमर कहानी
कलकत्ते में जाकर ली, 1898 में बी ए की उपाधि
आकर हिंदी की सेवा में लग गया माधव
प्रथम हिंदी कहानी का लेखक कहाया माधव
सन 1900 की जनवरी में, पेंडरा के मासिक की कहानी
सुन लीजिए छत्तीसगढ़ मित्र के जन्म की कहानी
हर अंक विविधता पूïर्ण, कहानी थी कविता थी
लेख था, जीवन थी, पुस्तक समीक्षा भी थी
सब विधा युक्त था, संपादक सप्रेजी थे
छत्तीसगढ़ मित्र को तीन वर्ष सम्हाले सप्रेजी थे।

1906 में हिंदी ग्रंथमाला के प्रकाशन की ठानी
सुना रहा हूं, क्रमवार सप्रेजी की अमर कहानी
बाल गंगाधर तिलक का केसरी मराठी में था
पूरे भारत में विचार फैलाने हिंदी करना जरुरी था
1907 में नागपुर से हिंदी में केसरी प्रारंभ हुआ
इसी कारण लल्ली प्रसाद पांडेय जी से संपर्क हुआ
केसरी के अनुवादक को जेल की हवा थी खानी
1908 के समय की है यह सप्रेजी की अमर कहानी
मराठी के अद्भूत ग्रंथों का अनुवाद किया

पद्माकर-के-काव्य-में-अध्यात्म-और-इसका-स्वरूप



पद्माकर के काव्य में अध्यात्म

जब श्रद्धावान मनुष्य इंद्रीय विग्रह तथा ज्ञान प्राप्ति का प्रयत्न करने लगता है तब इसे ब्रम्ह मात्मैक्य रूप ज्ञान का अनुभव होता है, जिससे उसे अविलंब पूर्ण शांति उपलब्ध होती है।
निर्गुण ब्रम्ह उपासक कबीर का कथन है कि माया के पास में पड़े हुए जीव का उद्धार केवल भगवद् भक्ति से ही नहीं हो सकता है। भक्ति के बिना माया जति संशय का दुख दूर नहीं हो सकता और न मुक्ति ही मिल सकती है। भाव भक्ति के निा भव सागर से पार जाना असंभव है।

कवि पदमाकर ने अपने रस निरूपण संबंधी ग्रंथ जगविदो में केवल नौ रसों को ही स्वीकारा है अर्थात वे भक्ति की महत्ता को स्वीकार करते हुए भी उनकी स्थिति शांत रस के अंर्गत करते हैं।
कवि ने अपने जीवन के अंतिम समय में कुष्ट रोग से अक्रांत होने पर उससे मुक्ति प्राप्ति हेतु गंगालहरी का सृजन किया था, इसीलिए कवि दृढ़ विश्वास के साथ गंगा की शरण में जाने से पूर्व अपने पापों को चुनौती देता हुआ कहता है ए रे दगादार मेरे पातकअपार तोहि, गंगा कछार में पछार धार करिहों।

पाप के इस वर्णन में जो गतिशीलता दिखाई देती है, वहां भक्ति की दृढ़ भावना संबलित है। गंगा के प्रति अपनी अटूट आस्था के कारण कवि स्थान-स्थान पर न केवल पाप की अवहेलना करता चलता है, अपितु स्थान पर समदूतों और उनके मालिक रामराज की उपेक्षा करने तक में उसे कहीं हिचक नहीं होती थी। कवि अन्यत्र कहता है गंगा के तीर तक पहुंचते ही पापों के पुंज लूट जाते हैं। प्रस्तुत छंद से प्रतीत होता है कि पदमाकर ने भक्त का हृदय पाया ता। उनकी भक्ति में गंभीर भावना है। इस भाव की निमग्नता के पूर्व उन्हें स्थायी निर्वेद हो गया था, जिसे प्रेरित होकर उन्होंने पश्चाताप पूर्वक कहा है।

भोग में रोग को पाया संयोग में वियोग को पाया। भोग साधन में काया का क्लेश पाया। वेद पुराण पढकर ज्ञान का अभियान हुआ और शास्त्रार्थ में स्वमत मंडन तथा परमत खंडन के हेतु विवाद में लगा रहा। जीवन ऐसे ही व्यर्थ गया। मैं पदमाकर अखंड आनंद प्रदाता राम का नाम न गाने पाया इसका पश्चाताप है।

guru vaibhav aur shri ramkrishan



गुरू की महिमा, उनका वैभव और मनुष्य जीवन की मुक्ति साधना के पथ में उनके अमूल्य योगदान का जो वर्णन हमें हिन्दू धर्म में मिलता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। बाकी धर्मों में उनके पैगंबर, ईशारदूत या मसीहाओं का उल्लेख है पर व्यक्तिगत स्तर परजिसप्रकार हम अपने गूरुद्वारा दीक्षित होते हैं, गुरूमंत्र ग्रहण करते हैं और गुरू को साक्षात परमेश्वर समझते हैं वैसे और कहीं भी किसी भी धर्म में नहीं है। संत कबीर ने कहा:

गुरू को मानुष जानते ते नर कहिए अधि एवं गुरू गोविंद दोउ एक हैं,गूरु नारायण रूप हैं, क्योंकि वे गोविंद दियो बताय। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा- ‘बंदउं गुरू पद कंज, कृपा सिन्धु नर रूप हरि ईश्वर की कृपा न हो तो सच्चे गुरू नहीं मिलते, मिलते हैं तो ढोंगी और ठग।’ कबीर कहते हैं-

’गुरवा तो सस्नामया, पैसा केर पचास।
रामनाम धन बेचिके शिष्य करन की आस।’

जब कबीर के जमाने में भी ऐसे ढोंगी गुरु होते थे तो आज का तो कहना ही क्या।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुं संत कहइ सब कोई।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी कलियुग सोइ ज्ञानी सो बिरागी।

आज ी गोस्वामी जी की बात उतनी ही सच है। उच्चकोचि के संत और गुरू दुर्लभ हैं। जिन्होंने ईश्वर की अनुभूति नहीं की दर्शन नहीं किए वे भी बड़ी संख्या में शिष्य बनाए जा रहे हैं। आए दिन दूरदर्शन और समाचार पत्रों में ऐसे ढोंगियों की कथा उजागर होती रहती है।

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हमर संस्कृति के पहचान ल बताये बर हमर शिक्षा प्रणाली म जगह होना चाही। पहिली के शिक्षा प्रणाली अंगरेज मन के आवश्यकतानुसार रहिस हे ऊंखर रहिस हे के सहर अउ गांव के बीच सांस्कृतिक दूरी ल बढ़ाये जाय। येखर परिणाम होईस सहरी युवा म सांस्कृतिक पहचान म कमी आइस। अऊ गांव डाहर के जिनगी जुन्ना संस्कृति म ठहर गे। ये खाई ह आज तक नई पटे हावय। येला सांस्कृतिक, शैक्षणिक कार्यक्रम ले पाटना चाही।

हबीब तनवीर के कहना रहिस हे, के भारत एक कृषि प्रधान देस आय। इहां के जनसंख्या बहुत जादा हावय, ओखर अधिक से अधिक जनसंख्या ह परखामन ले मिले हावय ओला ओमन लिख नई सकंय। जेन मनखे मन सिक्छा पाके सहर म आगे तेन मन सहरी संस्कृति ल अपना लेथे अउ अपन संस्कृति ले दूरिहा जथे। इही कारण आय हमर संस्कृति के गंवाय के।

मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली सरीख कई ठन सहर म थियेटर हावय, जिहां मौलिक नाटक तइयार होथे फेर ओला अंगरी म गिने जा सकथे। गिरीश कर्नाड ह रोचक कन्नड़ नाटक 'हयवदन' तइया करीस। जेमा सिर घोड़ा के अउ सरीर मनखे के एक पात्र हावय जोन ह अपन इसी सरीर ले परेसान हावय। अइसने बंगला भाषा म उत्पल दत्त ह नाटक 'लेनिनेर डाक' बनइस। जेमा निर्देशक घलो रहिस हे। ये ह 'जात्रा' ले मिलत-जुलत रहिस हे। एखर बाद मुंबई के पु.ल. देशपांडे ह मराठी लोकनाटक तमाशा के तर्ज म मराठी लिखिस अउ मंच करीस।

लोककला ऊपर मंचन करइया हबीब ह अकेल्ला नोहय। ये परम्परा के एक कड़ी आय फेर लोककला संग अपन विशेषता ल मिलाके अद्भुत शैली के विकास करइया ये ह अकेल्ला मनखे आय। ये शैली ह 1940 के दशक म बहुत प्रसिध्द रहिस हे जब इंडियन प्यूपिल्स थियेटर एसोसिएशन के संग बलराज साहनी, शंभू मित्रा तथा दीना पाठक सरीख मनखे मन पहिली बेर लोक नाटक ल समकालीन सार्थक रूप म बना के प्रस्तुत करीन। आज अइसना प्रयास नहीं के बरोबर हे।

हबीब तनवीर ह 'चरनदास चोर' म एक राजस्थानी कथा ल छग प्रहसन शैली म उहें के भाषा म प्रस्तुत करीस। छग के लोकनाटक के शैली म नवा नाटक लिख के उही ढंग ले प्रस्तुत करीस। बोलचाल के भाषा होय के कारन ये ह बहुत बड़े जनसमुदाय तक पहुंच सकथे। पारम्परिक पध्दतियों के उपयोग के बाद भी की ठन नाटक म सूत्रधार वाचक या फेर स्वयं पात्र द्वारा एक या अनेक स्थान के सूचना देय के कला के घलो प्रयोग होय हावय। भारतीय अउ हिन्दी रंगमंच म कल्पनाशीलता अउ सूक्ष्मता पहिली ले बहुत बाढ़ गे हावय। इही कारन आय कोनो-कोनो जगह म नाटय प्रदर्शन ह कौशलपूर्ण कलात्मक अउ स्तरीय हो हावय।

हबीब के ये स्पष्ट मन रहिस हे, के सब ल अनुभव हो जाना चाही के बूड़ती डाहर के देस ले उधार लेय या फेर नकल वाला सहरी थियेटर के स्वरूप ह अपूर्व अउ अपर्याप्त हे। ये ह वर्तमान भारत के मुख्य समस्या ल दूर करे म असक्षम हावय। सिरिफ गांव में ही भारत के नाटय परम्परा ह जियत हावय अउ सुरक्षित हे। हमर संस्कृति के बहुआयामी पक्ष के साफ अउ सही चित्र लोकनाटय म देखे जा सकथे। गांव के लोक नाटय ल प्रोत्साहित करना जरूरी हे। ओखर सम्पूर्ण विकास बर सही परिवेश देवाय के जरूरत हे। ये ह तब होही जब युवा वर्ग ल बताय जाय के थियेटर म लोक परम्परा के काय प्रभाव परही। हबीब के कहना रहिस हे हमन अपन परम्परा के सीमा ल तो जानत नइअन अउ विश्व में जेन होय हे ओला जाने बिगन उही डाहर बढ़ना हमर संस्कृति के उत्थान बर घातक हावय। पहिली अपन संस्कृति ल पूरा जानव ओखर बाद ओला आधार बना के दूसर के या बाहर के संस्कृति ल जानव। ऐला जानना घलो कठिन हावय। काबर के हमर कीमती सांस्कृतिक परम्परा ह गरीबी के क्षेत्र म गांव म बगरे हावय। भारत के अधिक से अधिक जनसंख्या गरीब हावय।

हबीब के कहना हे के सब सोचथे के आज के सामाजिक जरूरत हे आर्थिक विकास अउ सांस्कृतिक परिवर्तन। दूनों म विरोधाभास हे। आज औद्योगिकरण ल बढ़ाना हे एखर ले आर्थिक विकास होही, सामाजिक परिवर्तन होही, गरीबी तेजी से कम होही। आशंका होथे के आर्थिक विकास के संग हमर सांस्कृतिक परम्परा ह कमती झन हो जाय। सामाजिक परिवर्तन होही त सांस्कृतिक जीवन घलो बदलही। ये हर सोचे के विषय आय अंग्रेज के शासनकाल म हमर सांस्कृतिक पहिचान कमजोर परगे रहिस हे। अब ये बहुत जरूरी होगे हे के अगर लोक परम्परा ल संजो के रखन अउ बूड़ती डाहर के संस्कृति ले काय नुकसान होवत हावय तेला नवा पीढ़ी ल बतावन।

हमर संस्कृति के पहचान ल बताये बर हमर शिक्षा प्रणाली म जगह होना चाही। पहिली के शिक्षा प्रणाली अंगरेज मन के आवश्यकतानुसार रहिस हे ऊंखर उद्देश्य रहिस हे के सहर अउ गांव के बीच के सांस्कृतिक दूरी ल बढ़ाये जाय। येखर परिणाम होईस सहरी युवा म सांस्कृतिक पहचान म कमी आइस। अऊ गांव डाहर के जिनगी जुन्ना संस्कृति म ठहर गे। ये खाई ह आज तक नई पटे हावय। येला सांस्कृतिक, शैक्षणिक कार्यक्रम ले पाटना चाही।

अइसने हबीब ह लोककला के विकास अउ प्रसार बर बहुत सोचत रहिस। अपन स्वयं के स्तर ले लोक परम्परा के संरक्षण करे के प्रयास करत रहिस हे अउ शासन तथा आम मनखे ले घलो आशा रखथे। ओखर प्रयास के नतीजा आय के छत्तीसगढ़ी भाषा, नृत्य, गायन अउ लोककथा जम्मो दुनियां म बगरे हावय। येला अउ बगराय के जरूरत हावय। अब हमला अइसना कलाप्रेमी मनखे दुबारा मिलना कठिन हे।

लोकनाटय दू भाग म बंटगे। रासलीला, रामलीला, भागवत मेला, प्रहलाद नाटक, जात्रा पारम्परिक नाटय शैली ह मंदिर तक सिमट के रहिगे। येला धार्मिकता जादा मिलिस। कलात्मकता के क्षेत्र म तमाशा, नौटंकी, नाचा, पंडवानी मन ल जगह मिलिस अउ ये ह निमगा मनोरंजन के साधन बनगे। येमा कुछु विकृति घलो आय ले धर लीस। ओडिसी शास्त्रीय नृत्य के रूप म विश्व स्तर के मंच म विराजमान हे तेन हे। आज ले पचास साल पहिली लोकनृत्य के रूप म जाने जात रहिस हे। स्वतंत्रता के बाद श्रीमती कमला देवी चट्टोपाध्याय के अध्यक्षता म भारतीय नाटय संघ द्वारा एक संगोष्ठी रखे गीस। जेमा एक सत्र म सुझाव देय गीस के भारतीय नाटककार अउ निर्देशक मन ल पारम्परिक नाटय शैली ले कुछ सीखना चाही। त परिचर्चा में अनेक भागीदार मन के विचार के खिल्ली उड़ाय रहिन हे। कुछ मन कहिन के गांव बर लोक नाटय ठीक हो सकथे फेर आधुनिक सहर के नाटक मन बूड़ती डाहर के ढंग ल विकसित होही।

ये सब शंका के बीच हबीब तनवीर ह संस्कृत कथा मन ल पारम्परिक नाटय शैली म ढाल के प्रस्तुत करीस अउ ओमा सफल घलो होईस। अपन बात ल प्रमाणित कर दीस। हबीब तनवीर स्वयं बतईस के, ''हमर करा प्रोसीनियम स्टेज हावय। प्रकाश व्यवस्था हे, मंच के रूप साज हावय। शुरू-शुरू में मैं ह एखर उपयोग करेंव फेर बाद में सोचेंव के, मैं ह साधारण, सस्ता अउ किफायती रूप साज के उपयोग करंव। अइसनो प्रकाश व्यवस्था अउ मंच साज ल घलो करंव। मंच कइसना होही, दर्शक कहां बइठहीं, अभिनय कइसना करना हे- ये सब तय करना हे।'' हमन ल अपन परम्परा डाहर लहुटना हे। दुनिया ल अपन परम्परा के जानकारी देना हे। ये हर कथात्मक रूप म विश्वसनीय आधुनिक अउ समसामयिक हो।

ये सब बात ऊंखर नाटक के प्रस्तुतीकरण के बेरा म हबीब तनवीर ह कहे रहिस हे, के ये आंचलिक मुहावरा के नाटक ल दिल्ली म प्रस्तुत करे के एक उद्देश्य हे, के मैं ह व सभ्य समाज के बनावटी अउ ओढ़ आवरण ल उतार देना चाहथंव। ओमन ल अइसना एहसास ले परिचित कराना चाहत हंव। जेन हे बहुत खरा, अधिक ऊर्जावान अउ जीवन्त हे। वोमन ल खुलके हंसे बर गुदगुदाना चाहथंव, रोवाना चाहथंव। जेखर वो मन ला आदत नइये। वो मन ल अइसना तरीका ले मिलवाना चाहथंव जेन अनौपचारिक हे। अभिनय के सौंदर्यशास्त्र म एक रेखा म बंध के अइसना हंसी-ठट्ठा ले मिलवाना चाहत हंव। जेखर कोनो अंत नइये।

हबीब तनवीर ह अपन कथनी ल करनी म बदलीस। लोककला ल आधुनिक परिदृश्य म अउ पाश्चात्य कला ल पारम्परिक परिदृश्य म रच के अउ मंच म प्रस्तुत करके देखा दिस। लोक नाटय ह लोक रुचि अनुसार प्रदर्शित होइस। दक्छिन म 'कथाकलि' गवत्कथा म विशेष अभिनय होय ले लगगे। महाराष्ट्र म तमाशा, बंगाल म जाजा नाटक, उत्तर भारत म नौटंकी के प्रदर्शन ल मनखे मन रुचि लेके देखे ले लगगें। ये लोक नाटक गांव के संग-संग महानगर के रंगमंच म घलो होय ले लगगे। छत्तीसगढ़ म अइसना कई ठन पारम्परिक लोक कला हावय। नाचा, कर्मा, पंथी, पंडवानी, सरीख लोकगीत अउ नृत्य के अलग-अलग शैली ल मिला के लोकनाटय के मंचन होथे। हबीब ह ओमा अपन आप ल समर्पित कर दीस।

what is the purpose of literature



शायद मेरी बात से तुम सहमत होगे, अगर मैं कहूँ कि साहित्य का उद्देश्य है - खुद अपने को जानने में इंसान की मदद करना, उसके आत्मविश्वास को दृढ बनाना और उसकी सच की खोज को सहारा देना, लोगों की अच्छाइयों का उद्धाटन करना और बुराइयों का उन्मूलन करना, लोगों के हृदय में हयादारी, गुस्सा और साहस पैदा करना, ऊँचे उद्देश्यों के लिए शक्ति बटोरने में उनकी मदद करना और सौंदर्य की पवित्र भावना से उनके जीवन को शुभ्र बनाना। तो यह है मेरी व्याख्या।

जाहिर है कि यह व्याख्या एक खाका भर है और अधूरी है। तुम इसमें जीवन को परिष्कृत करने वाली दूसरी चीजें भी जोड़ सकते हो। लेकिन मुझे यह बताओ - क्या तुम इसे मानते हो?

एक समय था जब, यह धरती लेखनकला-विशारदों, जीवन और मानव-हृदय के अध्येताओं और ऐसे लोगों से आबाद थी, जो दुनिया को अच्छा बनाने की सर्वप्रबल आकांक्षा और मानव-प्रकृति में गहरे विश्वास से अनुप्राणित थे। उन्होंने पुस्तकें लिखीं, जो कभी विस्मृति के गर्भ में विलीन नहीं होंगी, क्योंकि वे अमर सच्चाइयों को अंकित करती हैं और उनके पन्नों से कभी न मलिन होने वाला सौंदर्य प्रस्फुटित होता है।

Incurable disease of writers in hindi



शायद उस बहुचर्चित काण्ड से तो आप भी परिचित होंगे जब मेरी एक व्यंग्य रचना दो बार छप गई थी। मेरी ही असावधानी के कारण हुई थी वह दुर्घटना। लेखक समुदाय मुझसे पहले से कुण्ठित था, बस उन्हें तो गोल्डन चांस मिल गया। धड़ाधड़ दफ्तर में लोग मिलने आने लगे तथा टेलीफोन बजने लगे।

एक ऐसी अनहोनी जिसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी, सनसनी की तरह शहर की फिजां में फैल गई। रचना छपी उस दिन तक भी मुझे पता नहीं था कि काण्ड इतना विकराल रूप ले लेगा। लेखकों ने संपादक को पत्र लिख-लिख कर पस्त कर दिया तथा मांग की जाने लगी कि मुझे ब्लैक लिस्ट किया जाए। कुण्ठित लेखकों का यह मानना था कि वे मुझे ब्लैक लिस्ट कराने के बाद वे अपनी रचना आसानी से छपा सकेंगे।

The base of krishna religion - श्रीमद्वल्लभाचार्य



भारतवर्ष की पवित्र भूमि पर जहाँ देवता भी जन्म लेने में अपने को कृत्कृत्य मानते हैं, समय-समय पर अधर्म के नाश और धर्म के उत्थान हेतु महान् तपस्वी, महात्मा व लोकसंग्रही महापुरुषों ने अवतार लिया है।

इसी महान् परम्परा में जनमानस के हृदय में भगवद भक्ति की अक्षुण्ण भागीरथी धारा प्रवाहित करने वाले महाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्य का भी यहाँ अवतार हुआ। वल्लभाचार्य ने अन्य वैष्णव आचार्यों की भाँति भक्ति के शास्त्रीय स्वरूप को ही अधिक महत्व दिया है। उत्तर भारत में प्रभु श्रीकृष्ण की भक्ति को दृढ़ता प्रदान करने में उनका योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

उन्होंने जहाँ एक ओर भगवतकृपा पर आधारित भक्तिपरक 'पुष्टिमार्ग' का प्रवर्तन किया वहीं दूसरी ओर 'शुध्दाद्वैत' नाम से दार्शनिक सिध्दांत का प्रतिपादन भी किया। साथ ही अपने मतानुसार विधि-विधान सहित पूजा-प्रक्रिया भी सुनिश्चित की। इस प्रकार वल्लभ मत का सैध्दान्तिक व व्यावहारिक पक्ष दोनों ही अत्यन्त पुष्ट और समृध्द है।

Village Culture is better than city culture



उस दिन अल सुबह जब मैंने चाय की चुस्कियों के साथ अखबार हाथ में उठाया तो मन आनंद से भर उठा। उस दैनिक में एक विज्ञापन छपा था जो काफी बड़ा था। किसी भी पाठक का ध्यान उस ओर आसानी से जा सकता था। विज्ञापन में लिखा था - बेटी है अनमोल, बेटी के बिना आपका जीवन अधूरा है । उसकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए। और अंत मे लिखा था भ्रूण का लिंग निर्धारण अपराध है।

थोड़ी देर बाद जैसे ही मैंने दूसरा अखबार हाथों में लिया वह पढ़कर खुशी काफूर हो गई। पहले अखबार के विज्ञापन का आनंद मुझे इसलिए भी हुआ होगा क्योकि मैं स्वयं एक लड़की हूँ। और दूसरे अखबार को पढ़कर आनंद इसलिए गुम हो गया क्योकि वह समाचार भी उस विज्ञापन से संबंध रखता था। उस दैनिक में कन्या भ्रूण हत्या पर एक संपादकीय छपा था। संपादकीय ये किसी भी अखबार का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

Empire of Mind Power in hindi



हिंदी अब समूचे विश्व का भ्रमण कर रही है। भारतवंशियों ने विभिन्न देशों में हिंदी की अस्मिता का बनाए रखा है। सबसे अहम बात यह है कि भारतीय संस्कृति और हिंदी भारत की प्रचुर बौद्धिक संपदा के साथ विश्व-यात्रा पर है। यह यात्रा भारत के बाहर नए भारत के अस्तित्व के प्रमाण हैं। मैं अपनी ब्रिटेन-यात्रा के कुछ सुख आपके साथ बांटना चाहता हँ।

यह सुख भारत के बाहर ऐसे देश के भीतर का सुख है जो वर्षों तक हमें और हमारे जैसे अनेक देशों पर राज करता रहा। इन देशों की पूँजी, सांस्कृतिक संपदा और धन-वैभव का संग्रहालय नजर आता है समूचा ब्रिटेन। जब हम लंदन में भारत के कोहिनूर हीरे की नुमाइश के लिए कतारबद्ध होते हैं तब लगता है कि हमारा वैभव यहाँ किले में कैद है और अनेक राजकुमार अपनी बौद्धिक संपदा की पूंजी लेकर ब्रिटेन में अपना राज स्थापित करने और कोहिनूर की भारत वापसी के लिए आ चुके हैं।

इन राजकुमारों में साफ्टवेयर इंजीनियर, चिकित्सकों, व्यापारियों और मेहनतकश भारतीय शामिल हैं। भारतीयता का यह ध्वज ब्रिटेन के अनेक नगरों में लहरा रहा है।

इन राजदरबारों में नवरत्न भी हैं और इन्हीं नवरत्नों में से ब्रिटेन में अपनी विशिष्ट पहचान के साथ विराजमान वहाँ के हिंदी कवियों का भरा-पूरा समाज है । हिंदी कवियों ने ब्रिटेन में हिंदी कविता को भारत की संवेदना और ब्रिटेन के वर्तमान समाज की जटिलताओं के साथ समन्वय के मध्य सेतु के रूप में स्थापित किया है ।

इन कवियों के मध्य जाकर लगा कि हिंदी साहित्य का वैश्विक स्वरूप अपने विराट स्वरूप में पाँव पसार रहा है । ब्रिटेन में अंताक्षरी खेलते समय भारतीय साहित्य के गाने गाते हैं । वे लौटते हैं हमारी सभ्यता-संस्कृति के सुहाने दिनों की ओर । इसीलिए मुझे मारीशस और ब्रिटेन जैसे देशों में नया भारत नजर आता है जो नया होते हुए भी भारतीय अस्मिता-बोध से परिचित है।

बौद्धिक संपदा के पलायन से मैं ज्यादा चिंतित नहीं हँ । मैं इसे पलायन नहीं मानता, जब ब्रिटेन जैसे छोटे से देश के लोगों ने वर्षों पूर्व अपनी बुद्धि के साथ व्यापार और राज करने समूचे विश्व को खंगाल लिया था, तब अरब की संख्या वाले भारत के चाणक्य अगर दुनिया में पैर पसार रहे हैं तो किस बात की चिंता ।
भारतीय इस बात को लेकर भी उदास से रहते हैं कि भारत में सुविधाओं का अभाव है । यह सच है कि यूरोपीय या एशिया के भी छोटे-छोटे देशों ने भौतिक रूप से अपने आप को आधुनिक स्वर्ग बना लिया है लेकिन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से वे भारत का चरण-स्पर्श भी करने का सामर्थ्य नहीं जुटा पाए हैं । ऐसी भौतिक तरक्की का क्या लाभ जहाँ संवेदना का शून्याकाश हो, जहाँ रचनाधर्मिता भारत की ओर निगाह ताकती हो, ऐसे में हम अभाव में बेहतर सृजन का सामर्थ्य रखते हैं और दुनिया के बौद्धिक भूमंडल में कब्जे की ताकत भी रखते हैं ।

भारतवंशियों के प्रणाम के साथ,

Some Memories in Hindi

हबीब तनवीर
इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया

दिसम्बर सर्दियों के दिन थे। कनाट प्लेस में हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। यह 1959 की बात है। सुरेश अवस्थी ने बताया ये हबीब तनवीर है। मैंने देखा सिर पर एक टिपिकल टोपी के साथ वे रेनकोट पहने हुए थे। पहली मुलाकात इस तरह हुई। कु छ समय पहले ही वे इंग्लैण्ड से वापस आए थे। उस समय मोहन राकेश भी साथ थे।

यह बात 1959 की है, फिर तो गोष्ठियों में नेमि जी, सुरेश अवस्थी, मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, प्रयाग शुक्ल के साथ हबीब जी से अक्सर भेंट होने लगी। जोधपुर में इप्टा का सम्मेलन 1970 में हुआ था। उसमें हम तीन दिन साथ-साथ रहे।

उनको बहुत नजदीक से जानने और समझने का अवसर मिला। जोधपुर में उन्होंने ठेठ छत्तीसगढ़ी गीत सुनाए, बहुत अच्छा गाते थे हबीब तनवीर, मैंने आगरा बाजार नाटक सबसे पहले दिल्ली में देखा था। उसी समय 1960 में अल्का जी आए थे। अल्का जी का थियेटर और हबीब जी का थियेटर दोनों साथ-साथ निकले थे। एक ओर अल्का जी शेक्सपीयर से और इंग्लैण्ड से परम्परा लेकर आए थे। दूसरी ओर हबीब तनवीर ने इप्टा की परम्परा को आगे बढ़ाया। - नामवर सिंह

समूचे युग का अंत

हबीब तनवीर जैसा रंग निर्देशक सम्पूर्ण विश्व में दूसरा नहीं। उनकी सबसे बड़ी विलक्षणता यही है कि उन्होंने एक ही दिशा में, एक ही तरह का, एक ही नाटय दल और एक ही अभिनेताओं के समूह के साथ लगभग पांच दशकों तक किया। यह जरूर है कि अंचल विशेष के अभिनेताओं के साथ इस अटूट संबंध ने एक ओर उनके नाटकों को बहुत समर्थ और प्रभावशाली बनाया तो दूसरी ओर उसकी सीमा भी निश्चित कर दी। हबीब तनवीर के निधन से एक समूचे युग का अंत हो गया है। वह भारतीय रंगमंच के युगदृष्टा थे। उनके जैसी प्रतिभा अब कहीं नजर नहीं आती।
- देवेन्द्र राज अंकुर, एनएसडी अध्यक्ष

एक प्रतिबध्द नाटककार

मेरे ख्याल से हबीब तनवीर हमारी लोक परंपरा का बहुत बड़ा हिस्सा थे। वह लोक परंपरा जो हमारे नाटक की लोक शैली से शुरू होकर पारसी रंगमंच और इप्टा के आंदोलन तक चली। हबीब तनवीर इसके वाहक थे। उन्होने जितने नाटक किए उनके केन्द्र में जनता और जनता से जुड़ी समस्याएँ ही रहीं। वे एक प्रतिबध्द नाटककार थे। वे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता पर पूर्ण विश्वास करते थे। यही मूल्य उनके नाटकों में देखने को मिलते हैं। मैं चाहता हूँ कि हबीब तनवीर के काम को आगे बढ़ाया जाए। नाटक और जनता के बीच जो दूरी आ चुकी है उस दूरी को खत्म किया जाना चाहिए। हिंदी क्षेत्र में नाटक को एक आंदोलन के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए, जो कन्नड़, मराठी और बंगला नाटक में जारी है। कन्नड़, मराठी और बंगला नाटक जिस तरह से जनता को प्रभावित करते हैं ऐसा हिंदी नाटक में भी होना चाहिए।
- असगर वजाहत, साहित्यकार

कला समाज के मुखिया थे

हबीब तनवीर न केवल एक ऊँचे दर्जे के अभिनेता और निर्देशक ही नहीं बल्कि पूरे कला समाज के मुखिया थे। हबीब साहब उन लोगों में थे जिनका गहरा रिश्ता सिर्फ थिएटर से नहीं बल्कि सभी कला माध्यमों के लोगों के साथ था और कई पीढ़ियों के लोगों के साथ था। मेरा और उनका रिश्ता बहुत पुराना है। जब हम लोग दिल्ली आए, आगरा बाजार देखा और बाद में उनके सारे नाटक देखे। हमारी मुलाकातें होती रहती थीं। उनसे चर्चा करने का बहुत लाभ हम सबको होता था। मैं हमेशा से उनको याद करता ही रहा हूँ, पर आज विशेष रूप से उनकी बहुत सारी बातें याद आ रही हैं। उन जैसे व्यक्ति कम ही होते हैं। मैं ऐसी उम्मीद करता हूँ कि उनका काम, उनका योगदान बहुत दिनों तक याद रखा जाएगा। उन्होंने लोक कलाकारों के माध्यम से भारतीय रंगमंच में नया प्रयोग कर नई ऊँचाई प्रदान की। उनके नाम पर एक संस्थान बनाना चाहिए, ताकि उनके नाम की ख्याति और फैले। - प्रयाग शुक्ल, कथाकार और कला समीक्षक हबीब तनवीर एक शताब्दी पुरुष थे। उन्होंने लोक कलाकारों के माध्यम से भारतीय रंगमंच में नया प्रयोग कर नई ऊँचाई प्रदान की।
- रामगोपाल बजाज, पूर्व निदेशक
राष्ट्रीय नाटय विद्यालय

नाटकों के लिए लम्बी कतार लगती

भोपाल में मैं 'निराला सृजनपीठ' में 1994-96 के बीच रहा। और भी कारणों से जब भोपाल में रहा हबीब तनवीर के नाटकों को देखने का अवसर भी मुझे मिला। वहां मैंने देखा भारत भवन में उनके नाटकों की टिकिट के लिए कितनी लम्बी कतार लगती है। भारत भवन के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का एक सुखद शिष्टाचार भी बन चुका था कि उनके नाटकों की लम्बी कतारों में बडे-बड़े लोग स्वयं या उनकी पत्नी, टिकिट खरीदते हुए दिखाई देते थे। यह सब मुझे आश्चर्यचकित करता था।
- विनोद कुमार शुक्ल

सृजनात्मकता के क्षेत्र में खालीपन

श्री तनवीर ने भारतीय रंगमंच की दुनिया में कई तरह के प्रयोग किए और लोक को स्थापित किया। उन्होंने परंपरा और आधुनिकता के संगम से रंगमंच को नई शब्दावली दी। उनके निधन से सृजनात्मकता की दुनिया में एक खालीपन आ गया है।
- अशोक वाजपेयी, साहित्यकार

He has come back story in hindi

चम्‍पा मावले
उस दिन प्रतिदिन की भांति ही सूरज उगा था और प्रतिदिन की भांति ही अम्मा की दिनचर्या भी प्रारंभ हो चुकी थी। परंतु अम्मा के शरीर में वह उत्साह और वह स्फूर्ति दिखाई नहीं दे रही थी जो मैं हमेशा दिखा करती थी। उसे देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था माने उसका शरीर मन-मन भर भारी हो गया हो और वह उसे चलाने के लिए ठेल रही हो। फिर भी वह अनमने ढंग से अपनी दिनचर्या निपटा रही थी।

वैसे उसने अपने जीवन में कभी हिम्मत नहीं हारी थी। पति से बिछड़े कई वर्ष हो गए थे, परंतु वह नौकरी करती थी इसलिए उसे जीवन निर्वाह में कोई कठिनाई नहीं हुई थी। फिर भी अकेली होने के कारण अपने दायित्व निर्वाह में कुछ अड़चनें तो आई ही थीं, जिसे उसने आसानी से हटा लिया था।

सच पूछो तो वह अकेली थी ही कहाँ। उसका अपना बेटा विनय जो उसके साथ में था। क्या हुआ जो वह अभी छोटा था परंतु था तो साथ में। औरत के साथ में यदि उसकी संतान हो तो फिर उसे और किसी के सान्निध्य की आकांक्षा नहीं होती। यदि वह सामान्य औरत होती है तो जीने का सहारा मिल जाता है और लक्ष्य भी।

अम्मा को भी अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया था, वही उसका सुख था, वही उसका दायित्व था। इसलिए अम्मा अपने पुत्र को एक सक्षम आत्मनिर्भर व्यक्ति बनाने में जुट गई थी। उसने विनय को पढ़ाने-लिखाने में कहीं भी कोताही नहीं बरती थी। विनय तो अपनी अम्मा का आज्ञाकारी बेटा था ही, इसलिए अम्मा को उसे पढ़ाने-लिखाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। अन्य माताओं को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करने में डांट-डपट भी करनी पड़ती थी, वह एक क्षण को भी व्यर्थ नहीं जाने देतीं थीं। कहते हैं न, बच्चे सुन कर जितना नहीं सीखते उतना देख कर सीखते हैं। विनय अपनी अम्मा को पढ़ते-लिखते देखता ही था, इसलिए वह स्वत: प्रेरित हो कर अध्ययन में लगा रहता था। और एक दिन वह अपनी लगन व परिश्रम के बल पर कम्प्यूटर इंजीनियर बन गया। अम्मा को और क्या चाहिए था। वह अपने बेटे की सफलता से संतुष्ट थी। उसने अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था। उसे अपने बेटे पर गर्व था। परंतु एक दिन जब विनय ने कहा - अम्मा मुझे प्रायवेट कंपनी में नौकरी तो मिल गई हेै परन्तु मुझे अमेरिका जाना पड़ेगा। सुन कर जैसे अम्मा का संतोष और सुख क्षण भर में ही सूख गया। जिस प्रकार तेज ऑंच पर रखी गई पतीली का पानी निरंतर ऑंच पर रखे होने के कारण सूख जाता है और पतीली पर एक धुंधली सी आकृति छोड़ जाता है, अम्मा के मुख पर भी एक अजीब सी पीड़ा उभर कर रह गई थी, परंतु उसने विनय से कुछ नहीं कहा था। बेटे की इस नौकरी पर खुशी मनाए या गम वह समझ नहीं सकी थी।

यद्यपि वह बौध्दिक स्तर पर बेटे के इस निर्णय को नकार नहीं सकी। उसे पता था कि वर्तमान समय में हमारे देश में उच्च शिक्षा प्राप्त नवयुवकों को नौकरी के अच्छे अवसर कहाँ मिलते हैं भला। इसीलिए उच्च शिक्षित नवयुवकों को दूसरे देशों का मुँह देखना पड़ता है। ऐसा न भी हो तो वर्तमान भौतिकवादी सभ्यता ने नई पीढ़ी को दिग्भ्रमित कर रखा है। इसीलिए वे वैभवपूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिए कुछ भी करना चाहते हैं। इसके लिए वे माता-पिता ही क्या अपनी मातृभूमि भी छोड़ने से नहीं चूकते।

आज का युग भौतिकवादी युग है। इस युग ने नवयुवकों को एक शब्द दिया है कैरियर, जो वर्तमान में सभी महत्वकांक्षी युवाओं के मुख से सुनाई देता है। जिसका अर्थ है ऊँची डिग्री, ऊँची नौकरी और ढेर सारा पैसा, इसके लिए भले ही उन्हें ईमान बेचना पड़े या और कुछ।

इस प्रकार की मनोवृत्ति जगाने में विज्ञान की भूमिका कम नहीं है। विज्ञान दिन दूने रात चौगुने वैभव के एक से एक साधनों का निर्माण कर रहा है और विज्ञापन की दुनिया उसका उपभोग करने के लिए ललचा रही है। ऐसे में आज की पीढ़ी यदि बहक रही है तो इसमें उसका क्या दोष ? आखिर सब तो साधु, सन्यासी और त्यागी नहीं होते। साधु संत कहलाने वाले लोग भी जब भौतिक साधनों से अछूते नहीं रह सके हैं तो सामान्य लोगों को क्या कहा जाए।

यही सोच कर अम्मा ने विनय के निर्णय के विरुध्द कुछ नहीं कहा परन्तु मन, मन का क्या करतीं, वह तो बुध्दि की बात मानने को तैयार ही नहीं था। विनय की बात सुन कर उसे एक क्षण के लिए ऐसा लगा जैसे वह चलते-चलते ठोकर खा गई हों। उम्र के इस पड़ाव पर जब हर वृध्द व्यक्ति को किसी न किसी सहारे की, सेवा की आवश्यकता होती है, ऐसी स्थिति में कोई उन्हें छोड़ कर जाने की बात कहे तब, तब क्या कहे और क्या न कहे। माता पिता की ममता कहें या स्वाभिमान कहें वे अपनी संतान की उन्नति में अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए बाधक नहीं बनना चाहते हैं। जो माता पिता अपना सर्वस्व लुटा कर संतान का हित संवर्धन करते हैं वे उनकी उन्नति में रोड़ा कैसे अटकाएं, यही सोच उन्हें चुप रहने के लिए बाध्य करती हैं।

यद्यपि अम्मा को आर्थिक दृष्टि से कोई परेशानी नहीं थी। सर छिपाने के उसका अपना घर भी था परंतु घर केवल भौतिक साधनों से ही तो नहीं बनता। शरीर को संभालने वाले लोग मिल जाते हैं, परंतु मन को कौन संभालेगा। यही सोचते-सोचते अपने आप को बहुत कमजोर महसूस कर रही थी। उसने तो मन ही मन अपना अंतिम उत्तरदायित्व पूर्ण करने का निर्णय ले रखा था। उसने सोच रखा था कि विनय के अपने पैर पर खड़े होने के बाद वह उसका विवाह कर देगी। मैं उन पर आर्थिक बोझ तो हूँ नहीं, इसलिए कैसी भी बहु आए मुझे दो रोटी तो अवश्य सेंक कर देगी। मैं यदि उसके साथ अच्छा व्यवहार करूंगी तो वो क्यों मुझे दुत्कारेगी। उसने सोच रखा था कि वह अपनी बहु की इच्छाओं को समझेगी। वह, उसे वह सारी स्वतंत्रता देगी जो उसे अपने मायके में मिलती रही होगी या उससे भी अधिक जो वांछित हो। परंतु उसे लगा कि वह स्वप्न कदाचित अब शीघ्र पूरा होने वाला नहीं। बहु आ भी जाए तो भी वह अपने पति के साथ रहेगी। तब कैसी स्वतंत्रता और कैसी परतंत्रता।
सोचते-सोचते जैसे अम्मा खामोश हो गई थी। विनय ने माँ को इस तरह खामोश देखा तो बोला - च्अम्मा तुम मेरे निर्णय से खुश नहीं हो क्या ?

अम्मा की चेतना जैसे लौट आई बोली - च्क्यों? ऐसा क्यों पूछ रहे हो ? क्या मैं दुखी दिखाई दे रही हूँ?
विनय - च्दिखाई तो नहीं दे रही हो। मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया। विनय ने सच्चाई छिपाते हुए कहा था। थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने कहा - अम्मा मेरे जाने के बाद तुम बिलकुल अकेली नहीं हो जाओगी ?

अम्मा - च्हो तो जाऊँगी - तो

विनय - च्मुझे अच्छा नहीं लग रहा है।

अम्मा मटर छिल रही थी। इसलिए वह सिर झुकाए-झुकाए ही बोली - च्क्यों अच्छा नहीं लग रहा है कभी-कभी हमें वह भी करना पड़ता है जो हमें अच्छा नहीं लगता। और फिर तुम भी तो अच्छी नौकरी पाना चाहते थे न।
विनय - च्पाना तो चाहता था परंतु फिर भी अम्मा तुम ही कहा करती हो न कि अवसर बार-बार दरवाजा नहीं खटखटाता। इसीलिए समय को परखते हुए दरवाजा खोल देना चाहिए।
अम्मा - च्ठीक ही कहा करती हूँ, परंतु खूब पैसा और खूब वैभव की महत्वकांक्षा बहुत ऊँचा और पवित्र लक्ष्य नहीं है। जिसके लिए दरवाजा खोला जाए। व्यक्तित्व के विकास और कैरियर निर्माण का अर्थ केवल आर्थिक क्षेत्र से ही संबंधित नहीं है। व्यक्ति के विकास में चारित्रिक विकास भी समाहित है जिसमें सेवा है, त्याग है, दायित्व भी है।

अम्मा की बात सुन कर विनय उसकी ओर देखने लगा। वह समझ नहीं पाया कि अम्मा कहना क्या चाहती है। उस रात वह काफी रात तक जागता रहा। सोचता रहा। उसे नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रहा था कि हम आज के नवयुवक अपना कैरियर बनाने में अपने माता पिता की परेशानियों को भूल जाते हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करते-करते जीवन का वह बहुमूल्य समय निकल जाता है जिसमें व्यक्ति कर्म क्षेत्र में उतर जाना चाहिए। माता-पिता हमें उच्च शिक्षा देने के लिए न जाने क्या क्या सहते हैं। हम बैठे-बैठे सारी सुविधाओं का उपभोग करते हैं। और जब उनके प्रतिफल का समय आता है तब हम उन्हें, उन्हीं के भरोसे छोड़ कर चले जाते हैं दूसरे नगर में या विदेश में। हम उन्हें बिना पतवार की नाव की तरह वृध्दावस्था की घोर धार में छोड़ देते हैं... परंतु क्या किया जाए।

वह समझ नहीं पा रहा था।

दूसरे दिन वह सो कर उठा तो अम्मा के पीछे पीछे घूमने लगा। अम्मा बेडरूम में गई तो वह भी उसके पीछे गया, चौके में गई तो भी वह पीछे था। यह देख कर अम्मा ने कहा - च्आज तुझे क्या हो गया है रे... तू मेरे पीछे-पीछे क्यों आ रहा है।

विनय - च्क्यों तुझे अच्छा नहीं लग रहा है ?
अम्मा - च्लग रहा है, पर क्यों... तू परसों चला जाएगा इसलिए क्या।
सुन कर विनय की ऑंखों में आंसू आ गए। अम्मा भी गंभीर हो गई। परंतु वातावरण को हल्का बनाने के लिए वह विनय के सिर पर चपत लगाते हुए बोली - च्अच्छा-अच्छा चल नहा धो कर आ मैं तेरे लिए नाश्ता तैयार करती हूँ।

विनय नहा धो कर नाश्ता करके बाहर चला गया। उस दिन विनय देर से घर आया था। भोजन इत्यादि के पश्चात वह अपने कमरे में सोने के लिए चला गया। दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ गया। सुबह के दस भी नहीं बज पाए थे कि वह नित्य कर्म से निवृत्त हो कर तैयार हो गया। अम्मा तब तक चौके में उसके खाने की व्यवस्था कर रही थी। विनय ने अम्मा को आवाज लगाते हुए कहा - च्अम्मा नाश्ता हो या खाना, तैयार हो गया क्या? हो गया हो तो जल्दी दे दे।
अम्मा - च्जल्दी दे दूँ... कहाँ जाना है तुझको?
विनय - च्नौकरी पर।
अम्मा - च्नौकरी पर ? कहाँ ?
विनय ने फाइव स्टार होटल के दरबान की भांति छाती पर हाथ रख कर और झुक कर कहा - यहीं।
विनय – हां, यहीं। फिर कानों को हाथ लगा कर बोला - पर वेतन कम है चलेगा ?
अम्मा बोली - दौड़ेगा।
और पल भर में ही सूखते हुए पेड़ पर हरियाली छा गई।

Paper Vet Kavita in hindi

शुक्र है
उसने मारा पेपर वेट
अरे भाई
मारा नहीं फेंका
अगर न चूकता
तो कोई भी अंग
हो जाता भंग
संसद की तरह
जुड़ने में वक्त लगता
और जैसा आया है
वैसा कहाँ जुड़ता
मान लो
हाथ में कुछ और होता
यानी टाइप राइटर
पेन स्टेड
यानि साथ खड़े सिपाही की बंदूक
तब क्या करते
वहीं पर ढेर होने के अलावा

Monday 3 July 2017

Things to Do Before Bed For Healthy Skin

इस मौसम में त्वचा का खास ख्याल रखना बेहद जरूरी है. दिनभर में हमारी त्वचा के कई सेल्स टूटते हैं और रात के समय में नए सेल्स बनते हैं. ऐसे में अगर रात के समय त्वचा का खास ख्याल रखा जाए तो आप भी पा सकते हैं मक्खन जैसी मुलायम त्वचा.



चिंता, प्रदूषण, तेज धूप, बढ़ती उम्र हमारे चेहरे की कोमलता छीनने लगती है, जिससे हमारी त्वचा रूखी, बेजान और खुष्क हो जाती है, इसलिए जरूरी है कि आप सोने से पहले भी अपनी त्वचा का ख्याल रखें, इससे आप अपनी बढ़ती उम्र तो नहीं रोक पाएंगे लेकिन त्वचा को खूबसूरत जरूर बना सकते हैं.

रोज नहाएंत्वचा की सुंदरता बरकरार रखने के लिए जरूरी है कि आप अपनी दिनभर की थकान मिटाएं और थकान मिटाने के लिए सोने से पहले नहाएं. ऐसा करने पर शरीर की गंदगी तो साफ हो ही जाएगी. साथ रोमछिद्र भी खुल जाएंगे , जिससे त्वचा सांस ले सकेगी. अगर आप चाहें तो नहाने के पानी में में दो चम्मच शहद और पांच चम्मच दूध मिला लें. ये आपको ताजगी देगा.

मेकअप हटाएंसोने से पहले चेहरे का मेकअप हटाना बेहद जरूरी है. सिर्फ नहाने या चेहरा धो लेने से मेकअप नहीं हट जाता और यदि आप पूरा मेकअप हटाकर नहीं सोएंगे तो आपकी त्वचा सांस नहीं ले पाएगी, जिससे त्वचा में पिंपल और दाग धब्बे हो जाएंगे. मेकअप हटाने के लिए आप वैसलीन या फिर नारियल तेल का उपयोग कर सकते हैं, थोड़ा सा नारियल तेल पूर चेहरे पर लगाएं और रुई के फाहे से इसे साफ कर लें.

बालों का रखें ध्यानरात के समय बालों का ध्यान रखने का मतलब बिल्कुल नहीं कि आप शैंपू करें, बल्कि बालों अच्छी तरह सुलझाएं और कंघी करें. सोने से पहले बालों को बांध लें इससे बाल दोमुहे नहीं होंगे, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि बालों को ज्यादा खींचकर न बांधें इससे बाल कमजोर होकर टूटने लगते हैं.

मॉस्चराइज करेंनहाने के बाद सिर्फ चेहरे पर ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर की त्वचा को मॉस्चराइज करना जरूरी है. इसके लिए मौसम और त्वचा के अनुसार मॉस्चराइजर चुने, इससे त्वचा की नमी बनी रहेगी साथ ही होठों पर भी लिप बाम लगाना न भूलें.

रेशमी मुलायम तकिया चुनेंरात में सोने के समय ये जरूरी है कि आपके साथ आपकी त्वचा को भी आराम मिले. कॉटन या फिर किसी अन्य कपड़े से बने तकिए से नाजुक त्वचा को परेशानी हो सकती है, इसलिए सोने के लिए हमेशा रेशमी तकिए का चुनाव करें.

पूरी नींद लेंत्वचा का ख्याल रखने के लिए सबसे जरूरी है कि आप सात से आठ घंटे की सुकून भरी नींद लें. इससे आपकी त्वचा चमकदार बनती है. अगर आप रात में पूरी नींद नहीं ले पाए तो दिन में एक से दो घंटे की नींद जरूर लें.

चित्त अवस्थ में सोएंइस अवस्था में सोने से त्वचा में खिंचाव आता है, जिससे झुर्रियों की समस्या कम होती है. इसलिए जितना हो सके पीठ के बल सोने की कोशिश करें.

Credit: http://hindi.news18.com/news/lifestyle/things-to-do-before-bed-for-healthy-skin-1032390.html 

These Foods Can Control Your Anger

कई लोग ऐसे हैं जिन्हें गुस्सा जल्दी आ जाता है, वो भी छोटी-छोटी बात पर. ऐसे लोग गुस्से में अपने आप पर काबू नहीं रख पाते हैं और गुस्से में अपना ही नुकसान कर बैठते हैं. गुस्से में आपका ब्लड प्रेशर और दिल की धड़कने भी बढ़ जाती हैं. गुस्सा कई बार रिश्ते भी बिगाड़ सकता है, जिसका आपको बाद में काफी अफसोस भी होता है. तो चलिए हम आपको बताते हैं कुछ ऐसी चीजों के बारे में जिन्हें खाकर आप अपने गुस्से पर काबू पा सकते हैं.


ब्लू बेरीभारतीय इस फल को खाना कम ही पसंद करते हैं, लेकिन अगर आपको गुस्सा ज्यादा आता है तो ये आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. इसे खाने से तनाव कम होता है और दिमाग शांत हो जाता है, जिसकी वजह से आपका गुस्सा ठंडा हो जाता है.

चॉकलेट से पाएं गुस्से पर काबू
जैसा कि हम आपको पहले बता चुके हैं कि डार्क चॉकलेट खाने से आपका वजन कम होता है, लेकिन इसके साथ ही डार्क चॉकलेट आपके गुस्से को भी कम करता है, तो अगर आप चॉकलेट नहीं खाते तो अब खाना शुरू कर दीजिए.

मैग्नीशियम युक्त सब्जियांहरी और पत्तेदार सब्जियां आपके लिए फायदेमंद हैं ये तो आप जानते ही हैं. इसमें भरपूर मात्रा में कैल्शियम और मैग्नीशियम पाया जाता है. जो आपके दिमाग को शांत करता है और तनाव भी कम करता है, तो अबसे हर रोज एक हरी सब्जी अपने खाने में जरूर शामिल करें.

कोकोनट मिल्कजब भी आपको तेज गुस्सा आता है तो आपके खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है. इसे संतुलित करने के लिए आप नारियल पानी यानी कोकोनट मिल्क पी सकते हैं. इससे आपकी त्वचा को भी काफी फायदा होता है.

credit: http://hindi.news18.com/news/lifestyle/these-foods-can-control-your-anger-1031860.html

How Gst Is Going To Burn Your Pocket On Your Date

देश भर में जीएसटी लागू होने के बाद से ही इसका असर अब धीरे-धीरे लोगों पर दिखने लगा है. जीएसटी के बाद से ही लोगों के रोज़मर्रा के खर्चों में काफी बदलाव आए हैं. जीएसटी लगने के बाद अगर आप डेट पर जाने की सोच रहे हैं तो ये आपके लिए और महंगा सौदा साबित हो सकता है. इसका कारण ये कि अब आपको अपने बिल में सर्विस टैक्स नहीं बल्कि जीएसचटी चुकाना होगा. ऐसे में अगर आप मूवी पर जाने या फिर वीकेंड ट्रिप पर जाने की सोच रहे हैं तो पहले जान लीजिए कैसे हल्की होने वाली है आपकी जेब.



डिनर- जीएसटी लागू होने के बाद से आपके खाने का बिल अब दो टैक्स स्लैब में आ गया है. अगर आप नॉन एसी रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं तो आपको 12% जीएसटी चुकाना पड़ेगा और अगर आप एसी रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं तो आपको 18% जीएसटी देना होगा. अगर कहीं आप अपनी डेट को इम्प्रैस करने के लिए 5 स्टार होटल में जाते हैं तो यहां आपको 28% जीएसटी चुकाना पड़ेगा. अगर आप रेस्टोरेंट में शराब पीते हैं तो इसका बिल आपको जगह के हिसाब से चुकाना होगा क्योंकि शराब को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया है.

मूवी- आप अगर मूवी डेट का प्लान बना रहे हैं तो ये भी आपकी जेब पर भारी पड़ सकता है. मूवी टिकट पर आपको 28% जीएसटी चुकाना पड़ेगा. हालांकि अगर आपको कहीं ऐसा थियेटर मिल जाता है जहां टिकट की कीमत 100 रुपए है तो आपको 18% जीएसटी चुकाना होगा.

ट्रिप- अगर आप छोटी सी यात्रा पर जाना चाह रहे हैं तो एकॉनमी क्लास में सफर करने पर आपको 5% टैक्स में छूट मिल सकती है. इसके अलावा बिज़नेस क्लास में सफर करने पर आपको 12% जीएसटी चुकाना होगा. इसके अलावा 1000 रुपए से कम किराए वाले रूम्स पर आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा. 1000 से 2,500 तक के रूम के लिए 12% जीएसटी लागू होगा.

लॉन्ग ड्राइव- अगर आप कैब से ड्राइव पर जाना चाहते हैं तो आपको 5% टैक्स चुकाना होगा.

Essential Oils to Lose Weight in Few Days

सालों से कुछ तेल आपकी सुंदरता बढ़ाने और शरीर को स्वस्थ रखने में आपकी मदद करते हैं. ये आपकी मेटाबॉलिज्‍म की प्रक्रिया को संतुलित करके शरीर में हॉर्मोन्‍स के स्राव को भी संतुलित करने में आपकी मदद करते हैं. त्वचा में किसी प्रकार की समस्या हो या फिर पेट की कोई गड़बड़ी, ये हमेशा आपकी हर समस्या का समाधान करते हैं.

कुछ लोगों का ये कहना है कि तेल के इस्तेमाल से वजन बढ़ता है. यह बात कुछ हद तक सच हो सकती है, लेकिन पूरी तरह नहीं. अगर तेल का इस्तेमाल सही मात्रा और सही तरीके से किया जाए तो ये आपके बढ़ते वजन को कम करने में भी आपकी मदद करते हैं. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं उन तेलों के बारे में, जिनका इस्तेमाल करके आप किसी व्यायाम की अपेक्षा दोगुनी तेजी से अपना वजन कम कर पाएंगे.



चकोतरा का तेल

चकोतरा का तेल कई मायनो में आपके लिए फायदेमंद है. ये आपकी त्वचा, बाल और वजन कम करने में मदद करता है. इसमें कैल्शियम, विटामिन सी और विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है.
इसके अलावा इस तेल के कुछ फायदे इस प्रकार हैं-
1. भूख कम करने में आपकी मदद करता है.
2. वसा को घटाता है.
3. मेटाबॉलिज्म की क्रिया को संतुलित रखता है.
4. आपको ऊर्जावान बनाता है.
5. पेट, बांह और चेहरे के निचले हिस्से में तेल जमने से रोकता है.
6. सेल्यूलाइड और सूजन को कम करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल
इसे इस्तेमाल करने के लिए चकोतरा के तेल की 2 से 3 बूंदें, नारियल या बादाम के तेल के साथ मिलाएं और जिस जगह में फैट अत्यधिक हो, वहीं करीब 30 मिनट तक मसाज करें. इसे मसाज के बाद तुरंत न धोएं.

अदरक का तेल
अदरक में मौजूद एंटी इंफ्लामेट्री और एंटी ऑक्सीडेंट गुण आपको स्वस्थ तो रखते ही हैं, साथ ही आपका वजन कम करने में भी मदद करते हैं.
1. यह खून में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है.
2. पाचन तंत्र को मजबूत करता है.
3. कोलेस्ट्रॉल कम करता है.


ऐसे करें इस्तेमाल
इसे इस्तेमाल करने के लिए दो-तीन बूंद अदरक के तेल को नारियल या जैतून तेल की 5 से 6 बूंदों के साथ मिलाएं और आधे घंटे तक मालिश करें. रोजाना इसके इस्तेमाल से आपका अतिरिक्त फैट कम होने लगेगा.

पिपरमिंट ऑयल
यह तेल आपको पेट की सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने में मदद करता है. यह पाचन तंत्र को ठीक करता है और खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित करता है.
1. आपको ऊर्जावान बनाता है.
2. आपकी भूख को कम करता है.
3. मेटाबॉलिज्म को संतुलित करता है.

ऐसे करें इस्तेमाल
इसे इस्तेमाल करने के लिए 2 से 3 बूंद पिपरमिंट तेल और 5 से 6 बूंद नारियल तेल के साथ मिलाएं और करीब आधे घंटे तक अच्छे से मालिश करें. इसे भी मालिश के बाद तुरंत बाद न धोएं.

Research Said Cinnamon May Help To Reduce Obesity




एक अच्छी खबर है उन लोगों के लिए जो डायबिटीज और मोटापे से परेशान हैं. ऐसे लोग चाहें तो खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी का इस्तेमाल कर अपनी बीमारी पर काफी हद तक काबू पा सकते हैं.
भारतीयों पर हुए अपनी तरह के अकेले शोध में पाया गया कि रोजाना दालचीनी का 3 ग्राम पाउडर लेने से मोटापा काबू में रखा जा सकता है. इससे बढ़े ब्लड प्रेशर और कमर पर जमा होने वाली चर्बी को काबू रखा जा सकता है. इससे असामान्य कोलेस्ट्रॉल को भी ठीक रखा जा सकता है.

शोध में मोटापे और डायबिटीज जैसे रोगों को काबू करने में दालचीनी को फायदेमंद पाया गया है. इस रिसर्च को एम्स, दिल्ली यूनिवर्सिटी के होम इक्नॉमिक्स विभाग और फोर्टिस सीडीओसी अस्पताल ने मिल कर किया है. रिसर्च के नतीजे अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका 'लिपिड्स इन हेल्थ डिजीज' में छपे हैं.

इस शोध के तहत 130 मरीजों को 16 हफ्ते तक दालचीनी पाउडर दिया गया. हर मरीज को हर दिन 3 ग्राम दालचीनी पाउडर दिया गया. इसका नतीजा ये निकला कि हर मरीज का वजन 3.8 फीसदी तक कम हो गया.

शरीर की चर्बी 4.3 फीसदी कम हो गई. कमर का घेरा 5.3 फीसदी तक घट गया. ब्लड प्रेशर 9.7 फीसदी कम हो गया और खून में फास्टिंग ग्लूकोस का स्तर 7.1 फीसदी कम हो गया.

शोध की सबसे दिलचस्प बात ये है कि खाने में रोजाना दालचीनी का पाउडर शामिल करने के बाद किसी भी मरीज में कोई साइड इफेक्ट यानी दुष्परिणाम नहीं देखा गया है.

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अगर आप डार्क चॉकलेट के शौकीन हैं, तो आसान है वजन घटाना

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भारतीय महिलाओं को गहनों का सबसे ज्यादा शौक होता है, लेकिन कई बार लड़कियां अपने कपड़ों के साथ मैंचिंग ज्वेलरी का सलेक्शन नहीं कर पाती हैं. जिसकी वजह से उनकी खूबसूरत ड्रेस और अच्छा मेकअप भी फीका पड़ जाता है. तो चलिए देखते हैं बॉलीवुड की अदाकारा शिल्पा शेट्टी की कुछ खास ज्वेलरी जो आपकी सिंपल ड्रेस को भी देंगी रॉयल लुक. 




साड़ी के साथ ज्यादा गहने पहनने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि इससे आपकी साड़ी की खूबसूरती कहीं छिप जाती है, इसलिए साड़ी के साथ बड़े-बड़े कान के इयररिंग आपके लिए परफेक्ट मैच हो सकता है. 




ऑफ शोल्डर कपड़ों के साथ मैचिंग ज्वेलरी न हो तो आपकी खूबसूरत ड्रेस भी आप पर नहीं फबती, अपनी गोल्डन कलर की ऑफ शोल्डर ड्रेस के साथ आप कुछ इस तरह का नेकलेस ट्राय कर सकती हैं. 


रेड कलर की प्लेन साड़ी आपको एक अच्छा लुक देती है, इसलिए आप प्लेन साड़ी की साथ इस तरह की कमरबंद पहन कर सेक्सी लुक पा सकते हैं.




जब साड़ी के साथ ज्यादा गहने पहनने का मन न हो तो, तो आप हैवी ईयरकफ भी ट्राय कर सकती हैं, इसके बाद आपको कोई और ज्वेलरी पहनने की जरूरत नहीं होगी. 






अगर आप अपनी साड़ी के साथ एकदम ट्रेडिशनल लुक चाहती हैं, तो साड़ी के पल्लु को पिनअप करके,  कान में गोल्डन कलर के बड़े झुमके और गले में गोल्डन कलर का हैवी नेकलेस ट्राय कर सकती हैं. 




हैवी वर्क वाली साड़ी अगर आप फॉल पल्लु स्टाइल में पहन रहीं हैं , तो उसके साथ गजरा लगा हुआ जुड़ा और कान में बड़े झुमके पहनकर रॉयल लुक पा सकती हैं




Krishna Kathayein - Tales of Shri Krishna Part-5

3 की न 4 की चालीसा अलौकिक चमत्कार है यशोदा जी आश्चर्यचकित रह गई गोपाल ने देखा क्या मेरी मां का शरीर पसीने से लतपथ हो गया है मैं थक गई है कृपा करके स्वयं बंद करें भगवान श्रीकृष्ण इतने कोमल हृदय हैं कि अपने भक्तों के प्रेम को पुष्ट करने वाला थोड़ा भी परिश्रम छाया नहीं कर सकते और भक्त को परिश्रम से मुक्त करने के लिए स्वयं ही बंधन स्वीकार कर लेते हैं भक्त कार्यक्रम और कृपा की कमी यही दो अंगुली की दूरी है जब भक्त यह सोचता है कि मैं अपने परिश्रम से भगवान को मांग लूंगा तब वह भगवान से एक अंगुल दूर हो जाता है और भगवान अपनी कृपा को समेटकर उससे एक अंगुल और दूर हो जाते हैं जब मां ने देखा तो गोपाल बंद कर नहीं नहीं जा सकते फिर घर के काम धंधों में लग गई ओखल में बंधे हुए गोपाल ने उन दोनों अर्जुन वृक्षों को शांति देने पहले यक्षराज कुबेर के पुत्र थे इनके नाम थे नलकुबेर और मणि गरीब इनके पास धन ऐश्वर्य और सौंदर्य की कोई कमी नहीं थी इनका घमंड देख कर ही देव ऋषि नारद ने इन्हें श्राप दिया था और वह वृक्ष हो गए थे भगवान श्री कृष्ण ने सोचा यह दोनों मेरे प्रिय भक्त कुबेर के पुत्र हैं इन्हें वृक्ष योनि से मुक्त करना चाहिए इसीलिए श्रीकृष्ण ने धीरे धीरे धीरे चल खिसकाते हुए दोनों वृक्षों के बीच बढ़ा दिया दामोदर भगवान गोपाल की कमर में रस्सी कसी हुई थी उन्होंने ऊखल को यूंही तनिक जोर से खींचा क्यों ही वृक्षों की जड़े हिल गई दोनों Facebook बड़े जोर से तड़ तड़ आते हुए पृथ्वी पर गिर पड़े उन दोनों से अग्नि के सामान चाहिए तेजस्वी पुरुष निकले उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के चरणों में प्रणाम किया और हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे भगवान श्री कृष्ण ने कहा तुम लोग श्रीमद् से अंधे हो रहे थे देव श्री नारद ने जान देकर भी तुम्हारा कल्याण ही किया था इसीलिए नलकुबेर और मणि गरीब तुम लोग अब अपने घर जाओ तुम्हें माया मोह से छुड़ाने वाली मेरी भक्ति प्राप्त होगी यहां पर कुछ पढ़ने वाला हूं नहीं कुछ संस्कृत में बोलने वाला हो मैं तो वही भाषा में बात करुंगा दोस्तों कि जो हम सभी समझ सकते हैं क्योंकि मुझ में छोड़ा हमें कोई फर्क नहीं है मैं कोई संत महात्मा नहीं हूं ना ही कोई गुरु नहीं कोई टीचर नहीं कोई प्रोफेसर मुझ में और आप में कोई फर्क नहीं दोस्तो बस दो अच्छी बातें कहीं से मैंने जानी है जो आज मैं आपके साथ यहां पर शेयर करने वाला हूं और यह जो हमारा प्रोग्राम है जो 4 दिन का है ग्राम है उसका सबसे पहला पाठ है दोस्तों लाइफ ऑफ कृष्ण है यानि की कृष्ण भगवान जिंदगी से आज हमें यहां पर काफी कुछ जानना है दूसरा है कृष्ण एंड महाभारत यानि की कृष्ण का रोल महाभारत में किस तरह से रहा था वह हमें जानना है अल्टीमेटली दोस्तों जो लास्ट पार्ट अपना होता है वही भागवत गीता अध्याय 3 पाठ में अपना प्रोग्राम डिवाइडेड है और आज हम शुरुआत करेंगे दोस्तो लाइफ ऑफ कृष्ण के द्वारा वाइफ दोस्त कहां है सबसे पहले तो मैं आपको यह बताना चाहूंगा कि अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में एक बहुत ही ब्यूटीफुल रिसर्च हुआ था और वो रिश्ते चाहिए था कि जितने भी संत महात्मा या भगवान इस संसार में आ चुके उन सभी ने कैसे-कैसे पावर जूते उसने पाया जा कर जैसे एक नॉर्मल इंसान हम सभी ऐसा कहा जाता है कि वह लाइफ के थर्ड लेवल पर जी रहे हैं तीसरे लेवल पर अब आप कहेंगे थर्ड लेवल मतलब क्या है बहुत ही सिंपल हे दोस्तों हम एक शब्द समझते हैं इवोल्यूशन क्रांति उसमें सबसे पहले लेवल पर हे पेड़ पौधे दूसरे लेवल पर हे जानवर तीसरे लेवल पर हम इंसान हैं वह अब आप समझ पा रहे हैं ठीक है तो दोस्तों ऐसा कहा गया कि स्वामी विवेकानंद किचन का नाम तो हम सभी लोग जानते हैं दोस्तों उनके लिए कहा गया कि वह लाइफ के छठे लेवल पर ही रहते शिक्षण यानी कि दोस्त एक नॉर्मल इंसान से कई गुना पावरफुल वाइट उसी के साथ जैसे मैं आपको कहूं के दोस्तों आप चाहो तो भगवान का नाम सुना है यह गौतम बुद्ध हम कहते हैं


उनके लिए कहा गया कि बोला इसके लेवल पर जी रहे हैं और इसी तरह से 11 संत महात्माओं के भगवान अपने देश में यह दुनिया में हो चुके हैं वह सभी कहां है हमारी काकी यूनिवर्सिटी में सर्च किए थे उसने यह भी बताया गया कि जैसे जीसस है राम भगवान है वह लाइफ के ट्वेल्थ लेवल पर थे जितना लेवल ज्यादा उतना पावर ज्यादा जितना पावर ज्यादा अच्छा है वह चीजों को कर पाएंगे एक नॉर्मल इंसान नहीं कर पाता जिसे हम चमत्कार कहते हैं और उसी वजह से हम उन्हें भगवान का दर्जा देते हैं वाइट एंड माय डियर फ्रेंड से कह रही थी कि सबसे ज्यादा अगर किसी ने लेवल पाया हो इस संसार में आने के बाद एक इंसान का जन्म देने की बात तो हर कोई नहीं थी लेकिन थे वासुदेव कृष्ण माय डियर फ्रेंड्स के जिन्होंने 16 वहां पर बताया गया है लेकिन आप कहेंगे किशोर क्या हम वॉइस सर्च को डिलीट कर सकते हैं हम लुट ली कर सकते हैं बस मजे की बात यह है दोस्तों के अगर यह अमेरिका में रिसर्च हुआ है तो वह चाहते तो सच बता रहा हूं उसको रख सकते थे लेकिन उन्होंने कृष्ण को सबसे टॉप पर रखा तो उसी से हमें पता चलता है कि नहीं यार कुछ तो है यार कुछ तो हुआ है अलग-अलग तो जब आप इस बात बात को सुनकर खुश हो जाते कि वह वहां व्यास अमेरिका की यूनिवर्सिटी में कृष्ण के ऊपर रिसर्च रहा है वैसे तो मैं आपको यह बता दो कि अमेरिका की 10 मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी पहली 10 10 बेस्ट जो है उसमें से 5 यूनिवर्सिटी रहती है जहां पर कृष्ण के बारे में रिसर्च होता है और कृष्ण के बारे में पढ़ाया जाता है रिंगटोन कृष्णा शुक्ला साफी लेकिन एक्चुअली खुश होने की बात नहीं है यह दुखी होने की बात है दोस्त हो इसलिए होने की बात है क्योंकि अमेरिका की यूनिवर्सिटी में रिसर्च हो रहा है व्हाट अबाउट इंडिया अमीषा वापस आए वैज्ञानिक एजुकेशन क्या कर रहे चुके अगर वह नहीं समझ पाए तो इतने सालों के बाद आज जब हम सभी लोग यहां पर इकट्ठा हुए हैं उनके बारे में जानने के लिए यह समझने के लिए तो सबसे पहले तो हमें अपनी लेवल को उठाना पड़ेगा और तभी जाकर उन्हें समझना हमारे लिए मुमकिन होगा क्योंकि हर एक महत्वपूर्ण इंसान जब उस समय से पहले आए हैं तो लोग जो दूसरे हैं कभी-कभी हम उतना जैसे कि छोटा सा एग्जांपल दोस्तों क्या रहा हूं कहो कि जब राम भगवान और कृष्ण भगवान के जितने भी भगवान हो चुके है वह संसार में थे तब उनका उतना महत्व नहीं था जितना आज जब वह थे तब उनके मंदिर नहीं थे रिकॉर्डिंग डिसफंक्शन टॉकिंग व्हाट राइट जैसे कि मैं आपको कहूं कि कितने भी संत महात्मा कि जिन के साथ भी ऐसा हुआ जब वह जी रहे थे तो उसने फॉलो वर्ष नहीं थे लेकिन जब उन्होंने शरीर बना रहा हूं या फिर उनके बड़े बड़े आश्रम बने उनके मंदिर बने और क्या कुछ नहीं बन और उनकी कितने सारे फॉलोवर्स बढ़ गए क्योंकि जब इंसान समय से पहले आया है लोग उसे कुछ समझ नहीं समझ पाते हैं डॉक्टर्स बियर ट्राय टू अंडरस्टैंड फॉर्म कृष्ण प्रेम वेराइटी दोस्तों समथिंग बोर्ड एंड आर्टिस्ट कृष्ण गोस्वामी इन कंपैरिजन की कोई छू नहीं सकते किस कंपलेक्स इनोसेंट डार्क मैटर चुनाव कृष्ण का कलेक्शन करके निकाला नहीं था कि वह बिलीवर्स ब्लैक कलर हल्का नीला रंग का था दोस्तों मैं आपको कहूं कि जैसे आपने काफी सरे फोटोग्राफ समय देखा होगा या मूर्तियों


में देखा होगा कि उनको नीले रंग के बताए जाते हैं बॉलीवुड स्टार्स कभी आपने कोई फोटोग्राफ जैसे हमारे सामने अभी जो चल रहा हूं पनीर और मैं भी उनको नीले रंग के बताए गए हैं तो ओरिजिनल सिटी बहुत हकीकत यह था कि वह बिलीवर्स ब्लैक कलर के मतलब की है और हल्का सर नॉर्मल इंसान से होती है लेकिन ठीक है अब मजेदार बाते दोस्तों के शरीर को उसके पीछे एक मैसेज है और वह मैसेज इतना सुंदर है कि जिस तरह से दोस्तों आसमान नीले रंग का होता है और आसमान जो है अनंत है अनलिमिटेड उसी तरह से माय डियर फ्रेंड्स उनका रंग भी मिला था जो आसमान रंग उसी तरह से वह भी अनंत है यह अनलिमिटेड समथिंग मोर माय डियर फ्रेंड्स एंड आर्टिस्ट अरिजीत के जैसे मैंने कहा विश्व लाइट हल्का हल्का हल्का सक्ला तो आपने कभी सागर को देखा है फिर तो आपने देखा होगा दोस्तों की सावरकर रंग हल्का सा होता है क्योंकि आसमान के रिफ्लेक्शन की वजह से पानी का रंग नीला नजर आता है और एक मजेदार बात सागर को अगर आप गहराई में जाकर देखेंगे अंदर जाकर तो आपको हल्का सा काला नजर आएगा क्योंकि क्योंकि जितना हो गहरा हो जाएगा उतना उसका रंग काला हो जाता है सीधी और सिंपल बहराइच न्यूज़ ब्लैक कलर सागर का है उसी तरह श्री कृष्ण के लिए हमें यह समझना है और वह सागर की तरह चेहरे पर आसमान की तरह वह अनंत थे टेक्स्ट मैसेज बिहाइंड का नोट कलर विजन मॉडिफाइडर किए यह बालक देवकुमार जैसा था उसे शिशु के दांत तथा बड़े नुकीले थे कंधे सिंह के समान थे दोनों हाथों में चक्र का चिह्न था तथा सिर बड़ा और ललाट हो जाता मित्र मनोहर हल्की लुभावनी थी तथा मुख्य मंडल प र पूर 32606 वर्ष की अवस्था होते होते वह बालक अद्भुत से अद्भुत कार्य करने लगा कभी तो वह बंद करते हैं वह आधी हिंसक पशुओं को पकड़ लाता तथा कुछ को पेड़ से बांध देता था कभी किसी के ऊपर चढ़ कर दूसरे को डांटता था तो कभी उनके साथ खेलता और दौड़ लगाता है उनके बच्चे भी इसके लिए मिट्टी के खिलौनों की तरह के उनको बगल में दबाए हुए घूमता फिरता रहता था जिन हिंसक पशुओं को देखकर बड़े बड़ों को पति क्या हो यह नन्हा सा बालक भेड़ बकरी की तरह घुमाया फिराया करता था इतना ही नहीं आश्रम में राक्षस पिशाचों को भी पास जाने पर उन्हें बिना अस्त्र-शस्त्र के मुख्य से ही मार-मारकर भगत विशाल से विशाल व्यक्ति भी इस बालक का सामना ना कर पाते थे एक दिन एक महाबलशाली तत्य उस बालक के पास आया वह अन्य व्यक्तियों की दुर्दशा को देखकर अत्यंत क्रोध से भरा था छोटा सा बालक देख कर उसने इसे अपने हाथों में दर्द बेचना चाहा किंतु इसके पहले ही उसकी नियत समझकर उस बालक ने बड़ी फुर्ती के साथ उसे पकड़ लिया अब क्या था दोनों एक दूसरे को मार डालने की चेष्टा में लग गए बालक ने अपनी बाहों में उसे इतनी दृढ़तापूर्वक जकड़ रखा था कि अपनी पूरी शक्ति लगा कर भी वह दैत्य निकलना पाया अंत में निकलने का कोई चारा न देख कर वह दैत्य सुरूर जोर से चिल्लाकर उसे डराने-धमकाने लगा चलाता था उतना ही वह बालक उसे ज़ोर से दबाता था धीरे-धीरे भयंकर भगत के मल मूत्र करने लगा दुष्यंत कुमार ने बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के ही उसे खेल ही खेल में हमार गिराया इस अद्भुत कार्य को देखकर सभी


आश्रमवासी उसके बल की प्रशंसा करने लगे तथा उसका नाम सर्वदमन कर दिया क्योंकि वह सब जीवो का दमन कर देता था आगे चलकर यही सर्वदमन भरत के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इसी के नाम से इस भूखंड का नाम भारत हुआ कंफर्म मगध नरेश जरासंध तथा अनेक बलशाली राजाओं का सहयोग प्राप्त था उनकी मदद से वह यदुवंशियों का नाश करने लगा यदुवंशी कंस के अत्याचार से भयभीत होकर दूसरे देशों में जाकर बसने लगे उसने एक एक करके देवकी के छह पुत्रों की अंत में साथ में गर्भ के रूप में भगवान श्री श्री देवकी के गर्भ में है भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योग माया को आदेश दिया कि तुम किस समय देवकी के गर्भ में स्थित देश जी को रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दो मैं संपूर्ण कलाओं के साथ देवकी का पुत्र बनूंगा और तुम नंद गोपाल की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना भगवान के आदेश से जोगमाया ने वैसा ही किया कुछ दिनों बाद देवकी के शरीर की कांति से बंधी ग्रहण जगमगाने लगा यह देखकर कंस ने सोचा कि इस बार अवश्य ही इसके गर्भ में मेरे प्राणों के ग्राहक विष्णु ने प्रवेश किया है परंतु एक तो यह स्त्री है दूसरे मेरी बहन है और तीसरे गर्भवती है इस को मारने से मेरी कीर्ति नष्ट हो जाएगी इसलिए मैं इस का वध नहीं करूंगा तब इतना अधिक दुष्ट था कि वह देवकी को आसानी से मार सकता था पर इस समय क्या उसने स्वयं की क्रूरता का विचार छोड़ दिया अब वह विष्णु के प्रति व्यवस्था कर उनके जन्म की प्रतीक्षा करने लगा आखिर प्रतिष्ठा का समय समाप्त हुआ भगवान के अवतार की शुभ घड़ी आ गई रोहिणी का पावना नक्षत्रशाला आकाश के सभी नक्षत्र तारे शांत और सौम्य हो गए निर्मल आकाश में तारे जगमगाते रहे थे पृथ्वी की छटा निराली हो गई आज बहुत दिनों बाद पृथ्वी के स्वामी भगवान उनका बार हरण करने के लिए अवतार ले रहे थे इसीलिए वह पलक पावडे बिछा कर तथा हृदय खोलकर प्रभु के दर्शन के लिए छाया हो गई जिस समय भगवान के अवतार का अवसर आया स्वर्ग में देवताओं की दुम दूधिया अपने आप पर उठाया किन्नर और गंधर्व मधुर स्वर में गाने लगे अप्सराएं नृत्य करने लगी बड़े-बड़े देवता आनंद से भर कर पुष्पों की वर्षा करने लगे जल से भरे हुए बादल गर्जना करने लगे भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की घूर अंधेरी आधी रात को तीनों में हमें भगवान श्री कृष्ण देवकी के गर्भ से प्रकट हुए वसुदेव जी ने देखा उनके सामने एक अद्भुत पालक है उसके नेत्र कमल के समान कोमल और विशाल है वह 

Kauwa Aur Sone Ka Haar - कोआ और सोने का हार

जब एक बार कोयल बच्चों को जन्म दे रही होती है इसलिए वह कोए को बाहर भेज देती है. फिर थोड़ी देर बाद में कोए को अंदर बुलाती है. अंदर आते ही वह ...