शायद उस बहुचर्चित काण्ड से तो आप भी परिचित होंगे जब मेरी एक व्यंग्य रचना दो बार छप गई थी। मेरी ही असावधानी के कारण हुई थी वह दुर्घटना। लेखक समुदाय मुझसे पहले से कुण्ठित था, बस उन्हें तो गोल्डन चांस मिल गया। धड़ाधड़ दफ्तर में लोग मिलने आने लगे तथा टेलीफोन बजने लगे।
एक ऐसी अनहोनी जिसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी, सनसनी की तरह शहर की फिजां में फैल गई। रचना छपी उस दिन तक भी मुझे पता नहीं था कि काण्ड इतना विकराल रूप ले लेगा। लेखकों ने संपादक को पत्र लिख-लिख कर पस्त कर दिया तथा मांग की जाने लगी कि मुझे ब्लैक लिस्ट किया जाए। कुण्ठित लेखकों का यह मानना था कि वे मुझे ब्लैक लिस्ट कराने के बाद वे अपनी रचना आसानी से छपा सकेंगे।
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